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इस प्रकार महाभारत काल पूर्व अथवा ३०४३ वर्ष विक्रम पूर्व तक स्वायंभुव मनु को ९०९० + ३०४३ – २५ = १२१०८ वर्ष बीत चुके थे ।
२. सप्तर्षि - गणना का आरंभ
भारतीय काल गणना में सप्तर्षि मंडल परिचालन से गणनाएं कब शुरू की गईं ? इस संबंध में निश्चय पूर्वक कुछ भी कह पाना कठिन है, किन्तु ऋग्वेद (१.२४.१०) में सप्तर्षि मण्डल (ऋक्ष) का विवरण है। उससे पूर्व (१.१०.३) एक मंत्र में कालावयवों को जोड़ने के अर्थ में 'युग' – पद भी प्रयुक्त है । इसके अलावा ऋग्वेद के दो और मंत्रों ( १०.८२.२ और १०.१०६.४ ) में सप्तर्षिमण्डल का उल्लेख है । इसलिये यह माना जा सकता है कि वैदिक काल में ही सप्तर्षियों के परिभ्रमण से कालगणनाएं की जाती रही हैं । किन्तु उस समय नक्षत्र मण्डल में २७ नक्षत्रों के स्थान पर शर्मिष्ठा, ब्रह्ममंडल और अभिजित् सहित तीस नक्षत्र माने जाते हों - ऐसा हो सकता है क्योंकि सौरमंडल के विशालतम गृह - बृहस्पति और शुक्र की 'अश्वनी' संज्ञा होने के अलावा उन्हें यमगृह के दो श्वान (१०.१४.११ ) कहा गया है और ऋग्वेद में ही कहा गया है कि यम काल-नियामक है । आकाशीय पिंडों के पारस्परिक आकर्षण - विकर्षण का भी वहां विस्तृत वर्णन है । "
ऊपर उद्धृत पार्टिजर के द्वारा संकलित पुराण - संकलन (DKA ) के श्लोकों में एक श्लोक इस प्रकार है
सप्तर्षीणां तु पूर्वी दृश्येते तयोर्मध्ये तु नक्षत्रं दृश्यते
उदितो निशि । यत्समं दिवि ॥
- ब्रह्माण्ड पुराण में यह श्लोक निम्न प्रकार से पठित है, जिससे सप्तर्षि परिचालन स्पष्ट होता है ।
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सप्तर्षीणां तु यौ पूर्वी दृश्येते उत्तरादिशि । तयोर्मध्ये तु नक्षत्रं दृश्यते यत्समं दिवि ॥ तेन सप्तर्षयो युक्ता ज्ञेया योग्नि शतं समाः ।
अर्थात् कभी सप्तर्षि पूर्व में उदित होते थे किन्तु कालान्तर में उत्तर दिशा में उदित होने लगे । हमारी विनम्र सम्मति में यह उत्तर वैदिक काल ( ब्राह्मणकाल ) की वह खगोल दुर्घटना है जिसका विवरण शतपथ ब्राह्मण में प्राप्त होता है । उस समय कृत्तिकाएं पूर्व में स्थिर मान ली गई । "
वास्तव में उत्तर वैदिक काल में ( लगभग ५००० वर्ष पूर्व ) कृत्तिकाओं को यकायक पर निरंतर पूर्व दिशा में उदित हुआ देखकर कर्मकाण्डों के लिए कृत्तिकाओं से गणना होने लगी और फिर लंबे समय तक दोनों प्रकार से कालगणनाएं होती रहीं ( कर्मसु कृत्तिकाः प्रथमं आचक्षते श्रविष्ठा तु संख्यायाः ) । 'मुखं वा एतन्नक्षत्राणां और 'तस्मात्कृत्तिका स्वादधीत' - इत्यादि ब्राह्मण वाक्य इसमें
यत्कृत्तिकाः '
प्रमाण हैं ।
खंड १७, अंक ४ (जनवरी-मार्च, 8२ )
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