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तुलसी प्रज्ञा (१७वां खण्ड) की अनुक्रमणिका
-परमेश्वर सोलंकी
अ-मूलशोध और विवेचनाएं १. डॉ० अरुणा आनन्द-उपाध्याय यशोविजयकृत पातंजलयोगसूत्र वृत्ति में वर्णित
___ कर्म सिद्धांत (१/२७-४१)। २. श्री उपेन्द्रनाथ राय--वीर निर्वाणकाल (१/११-२६)। ३. डॉ० के० आर० चन्द्र-अर्द्धमागधी भाषा :-म्हि और स्सि सप्तमी एकवचन की
प्राचीन विभक्तियां (२/७३-७५); सामान्य प्राकृत भाषा
में मध्यवर्ती त=द (३/१५७-१६०)। 4. K. C. Jain-Jaina Sources for the History of Nagaur
(1/9-13). ५. श्री गोपाल शर्मा-संस्कृत वाङमय में लोक अवधारणा (३/१११-११८) । 6. Dr. G. V. Tagare --The Ethical Aspect of an Individual
(3/59-66). ७. पं० चन्द्रकान्त बाली- बुद्ध-महावीर की ज्येष्ठता/कनिष्ठता के संदर्भ में वर्षाऽऽवास
का इतिहास (३/१५१-१५६)। 8. Dr. Chilana Mulk Raj--How I became what I am (3/76), ६. डॉ० जगन्नाथ जोशी एवं डॉ० (श्रीमती) कमला पंत-भारतीय दर्शन की आशावादिता एवं प्रगतिशीलता
(३/१४५-१५०)। 10. Jagatram Bhattacharyya-Three Magadhi Sutras found in the
commentry of Raghava on Sakuntalā
(3/77-79). 11. Dr. Jagdishchandra Jain--Importance of Angavijjā --a Prakrit
Text of Antiquity (2/33-38)। 12. J. L. Zaveri & Muni ___Maherdra Kumarji-Internal Force of Life (4/115-119). १३. डॉ० देवदत्त दर्शा-हिन्दी काव्य में पंच महाव्रत (४/१६३-१६६)। १४. डॉ० देवसहाय त्रिवेद-सम्राट् समुद्रगुप्त और उसका राजवंश (१/४५
५०)। 15. Nagendra Kumar Singh-Non-violent action in Jain Ethics
(4/103-113).
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