Book Title: Tulsi Prajna 1992 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 107
________________ खण्ड १७, (अनुक्रमणिका) १२५ 2. N. H. Samtani-Ashokan Message Towards Mutual Understanding ___of Religious Communities (2/44). ३. डॉ० भूपसिंह राजपूत-हांसी की विरल जैन मूर्तियां (१/४३-४४) । ४. श्री विजयकुमार एवं श्री किशनलाल-बीकानेर के राजकीय संग्रहालय में जैन संस्कृति का विराट् प्रति बिम्ब : जनकला दीर्घा (४/२०३-२०५)। उ-मधुकणिकाएं १. डॉ. परमेश्वर सोलंकी-निर्वाण काल वर्ष संख्या (१/५१-५३)। २. मुनि श्री जीवोजी-दृष्टांत शतक री जोड़ (२/८९-९८) । ऋ-स्तुति-श्रद्धांजलि आदि 1. Dr. B. K. Khadabadi-Contribution of German Scholars to Prakrit Studies with special reference to __A. Weber (3/55-58). २. नानालाल रूनवाल-ऋषभ जिन स्तुति : चतुर्विंशति जिनेश्वर नुति : (१/कवर पृष्ठ)। ३. डॉ० परमेश्वर सोलंकी एवं ___ अमृतलाल शास्त्री-५६वें पट्टोत्सव के पुनीत अवसर पर आचार्य श्री तुलसी के चरणों में नमन ! शतशत अभिनन्दन (२/१-२): श्रद्धांजलि-स्वर्गीय डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल (२/७६); A Creative Genius : Shrimad Jaya charya (2/17-18); Hermann George Jacobi (4/91-95). ल-सार सकलन १. डॉ० डी० आर० मांकड़-Kalki Incarnation (4/114). २. डॉ० परमेश्वर सोलंकी-महावीर निर्वाण बाद के सहस्र वर्ष (१/४२); The Chronological list of Sainy Seasons passed by Mahavira & Buddha (2/32). ए-संपादकीय डॉ० परमेश्वर सोलंकी-वीर निर्वाण संवत् (१/२-४); हाथी गुंफा लेख की दो ओळियां (२/२-४); मुरियकालवोछिने चोयठ अंगे (३/२-४); उदयगिरि-खण्डगिरी के छोटे लेखों का महत्त्व (४/२-४)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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