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--आचार्य श्री आत्माराम जैन प्रकाशन समिति, लुधियाना, प्रकाशन वर्ष-१९८३, पृष्ठ-१८८, मूल्य-१५ रु० ।।
तीर्थंकर भगवन्तों के गुणानुवाद से मानव को उत्तरोत्तर सद्गति की ओर बढ़ते जाने की प्रेरणा मिलती है। तीर्थ वह साधना केन्द्र होता है जहां से जीवन को परम तत्त्व तक पहुंचने की दिशा प्राप्त होती है, उस तीर्थ का निर्माण तीर्थंकर करता है । तीर्थंकर वह होता है जिसकी माता ने उसके गर्भ में आने से पूर्व १४ स्वप्न देखे हों, जो अनन्त ज्ञान-दर्शन आदि १२ गुणों से युक्त हो, जिसमें १२ अतिशय लक्षित हों, जिसकी वाणी में ३५ लोकोत्तर गुण हों, जिसका जीवन षड् दोषों से रहित हो, जिसने केवलज्ञान (पूर्व भगवत्ता की स्थिति) प्राप्त कर ली हो। उन्हीं २४ तीर्थंकरों का सचित्र चरित इस पद्यबद्ध कृति में है।
__ रचयिता जीवनप्रकाश 'जीवन' बड़े मनोवैज्ञानिक ढंग से पाठकों को निमन्त्रण दे रहे हैं कि इन २४ तीर्थंकरों के चरित्र पढ़ें :
भारत का मान छिपा इन में,
भारत की इनमें आभा है । कवि ने भारत भूमि, धर्म ध्वजा, ॐ तथा नवकार मन्त्र पर सारगभित सामग्री प्रस्तुत करके २४ तीर्थंकरों का हृदयहारी वर्णन अपनी सहज, सुन्दर, बोधगम्य भाषा में किया है। सम्भव बोला-"किन्तु पिताजी, कैसे कर्म असम्भव होगा ?
मैं तो अनश्वर राज्य का इच्छुक, मुझसे यह न संभव होगा। तात ! जिसे तुम त्याग रहे हो, उसमें मुझे फंसाते क्यों ?
स्वयं चाहते अमृत पीना, मुझको जहर पिलाते क्यों ?" पुस्तक की विशिष्टता यह है कि प्रत्येक तीर्थंकर के चित्र तथा उसकी पृष्ठभूमि में उसके जीवन का कोई सार्थक प्रसंग दर्शाया गया है जो कवि के काव्यकौशल का परिचायक है । पुस्तक के अन्त में चित्रों में अन्तनिहित जीवन-प्रसंगों का खुलासा करके कवि ने पाठकों को चरितावली का हार्द हृदयंगम कराया है।
. प्रत्येक तीर्थंकर के लिए २७ बातों का उल्लेख किया जाना अभीष्ट है जो कवि ने विस्तार भय से नहीं किया है, परन्तु कई स्थानों पर अनावश्यक विस्तार हुआ है, उसे कम करके भरपूर सामग्री दी जानी चाहिए थी। प्रूफ संशोधन ढंग से नहीं हुआ लगता है । मुद्रण, गेट-अप मनोहर है। एक अजैन व्यक्ति द्वारा रचित यह काव्य सत्यं, शिवं, सुन्दरं की त्रिवेणी है।
-रामस्वरूप सोनी
खण्ड १७, अंक ४ (जनवरी-मार्च, ६२)
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