________________
२४०
७. 'मुरियकाल वोछिने चोयठ अंगे' विषयक आपके सम्पादकीय को देखा । काफी दिलचस्प है । यदि उचित समझें तो मेरी पुस्तक The Hathigumpha Inscription of Kharavela and the Bhabru Edict of Asoka—a critical study देख लें | तुलसी प्रज्ञा के इस अंक में पर्याप्त उपयोगी सामग्री है जिसके लिए बधाई स्वीकार करें ।'
- डॉ. शशिकांत जैन, संपादक, शोधादर्श ज्योतिनिकुंज, चारबाग, लखनऊ
८. 'जैन विश्व भारती में जन्मीं 'तुलसी प्रज्ञा' अपने यौवन में विश्वविद्यालयवरण के साथ ही इसका निखार स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है । उसे स्वतः ही विश्व विद्यालय की मुख पत्रिका बनने का गौरव मिल गया है। पत्रिका शोधपूर्ण लेखों से विवाहित कलेवर और कथानक, आचार्य श्री तुलसी की तपोनिष्ठ दृष्टि को उजागर करने में अग्रसर है। यह प्रसन्नता की बात है । यह एक ओर इतिहास की ऊंचाइयों को छूती है तो दूसरी ओर अध्यात्म की गहराइयों में गहराती हुए प्रतीत हो रही है । जैन वाङ्मय और प्राकृत के साथसाथ भारतीय दर्शन पर पर्याप्त चिंतन कर रही है ।
मैं आपके सफल चयन और सम्पादन के लिए बधाई भेजता हूं ।' - रतनलाल कोठारी, जयपुर
६. 'हमें आपके द्वारा प्रेषित 'तुलसी प्रज्ञा' त्रैमासिक पत्रिका प्राप्त हुई । पत्रिका में जो जैनों और बौद्धों का तुलनात्मक अध्ययन दिया गया वह अति पठनीय है । इस प्रकार के लेख पढ़ने की हमारी अत्यधिक रुचि है एवं सम्पादक महोदय द्वारा पुस्तक समीक्षा स्तंभ में लिखित " मूकमाटी महाकाव्य" जो कि आचार्य विद्यासागर रचित है पर अपनी समीक्षा बड़ी सारपूर्ण लगी एवं पं० अमृतलालजी शास्त्री द्वारा मुनि-मनोरंजनाशीति जो कि आचार्य ज्ञान सागर द्वारा रचित है पर उनकी संक्षिप्त समीक्षा भी पढ़ी जो कि कम शब्दों में पुस्तक का सार है ।'
Jain Education International
-श्री रजनीश श्री विद्यासागर साहित्य संस्थान अतिशय क्षेत्र, पनागर
१०. 'जरमन स्कोलर्स का लेख बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। जैन धर्म, साहित्य, इतिहास पर काम किया है लिखाई जानी चाहिये और विश्व भारती से उसका प्रकाशन हो । यह बड़ा महत्त्वपूर्ण काम होगा ।'
जिन विदेशी विद्वानों ने उनकी जीवनी अलग से
-- हजारीमल बांठिया पंचाल शोध संस्थान, कानपुर
तुलसी प्रज्ञा
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org