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६-७ वर्ष पूर्व इसका नियमित पाठक था। अब इसके स्तर और कलेवर दोनों में ही विकास हुआ है । इस सुन्दर प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें।
मेरा सुझाव है कि जैन विद्या में शोध करने वाले छात्रों, विद्वानों को व्यक्तिगत रूप में यह अर्धशुल्क में दी जानी चाहिए जैसी कि उच्च शिक्षा की अधिकांश पत्रिकायें दी जाती हैं। यदि ऐसा होता है तो पहला ग्राहक आप मुझे समझें ।'
-डॉ० कपूरचंद जैन
अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, __ श्री कुन्दकुन्द जैन महाविद्यालय, खतौली-२५१२०१ ५. 'आप द्वारा संपादित अक्टूबर-दिसम्बर, १६६१ का तुलसी प्रज्ञा का अंक प्राप्त हुआ। इस उच्चकोटि सम्पादन के लिए बधाई। इस अंक की सामग्री को खोजपूर्ण एवं पठनीय पाया। 'भारतीय दर्शन की आशावादिता एवं प्रगतिशीलता'-लेख अमिट छाप छोड़ने वाला एवं अनूठा है। इसी प्रकार अन्य लेख भी शोधपूर्ण सामग्री से भरपूर हैं और यह अंक संग्रहणीय है।'
-डॉ० भीमराज शर्मा
केन्द्र निदेशक, आकाशवाणी, नागौर ६. ' 'तुलसी प्रज्ञा' का नया अंक मिला । इसमें प्रकाशित सभी लेख तथ्यपूर्ण और विचारोत्तेजक हैं किन्तु मैं 'वीरकाल' पर ही कुछ कहूंगा।
बालीजी के लेख और उस पर आपकी टिप्पणी को पढ़कर मैंने जुलाई-सितम्बर, १९९१ के अंक पर पुनः दृष्टि डाली तो बुद्ध का २१वां वर्षावास और महावीर का ३०वां वर्षावास समकालीन लगे। अतः महावीर का निर्वाण बुद्ध-निर्वाण के प्रायः २५ वर्ष पूर्व आता है (४६-२१=२५) ।
बुद्ध का निर्वाण १८०६ ई० पू० है और उन्होंने ८० वर्ष की आयु पायी थी अतः उनका जन्म १८८६ ई० पू० होगा। वीर की आयु ७२ वर्ष है अतः उनका निर्वाण १८३४ ई० पू० और जन्म १९०६ ई० पू० होना चाहिए। इस प्रकार बुद्ध का जन्म महावीर के १७ वर्ष बाद हुआ।
चूंकि बुद्ध का निर्वाण अजातशत्रु के शासनकाल के आठवें वर्ष हुआ अतः वीर निर्वाण के समय वह राजा नहीं अपितु युवराज ही रहा होगा। जैन या बौद्ध ग्रंथों में इसके विरुद्ध कहीं कुछ मेरी जानकारी में तो नहीं ही है।'
-उपेन्द्रनाथ राय
मटेली (पश्चिम बंगाल) बड १७, अंक ४ (जनवरी-मार्च, ९२)
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