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पुस्तक-समीक्षा
१. पुरुषार्थ की गाथा - प्रथम संस्करण, सन् १९६१, सम्पादक - मुनि सुखलाल । मूल्य ८० रुपये | पृष्ठ ४६७ प्रकाशक - जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, ३ पोचंगीज चर्च स्ट्रीट, कलकत्ता- ७००००१ शिविर कार्यालय :- लाडनूं ।
भारत के आर्थिक इतिहास में राजस्थान के मारवाड़ी व्यापारियों की भूमिका को लेकर पिछले काफी समय से शोध कार्य प्रगति पर है । मैं स्वयं भी इस विषय का एक अध्येता रहा हूं | अपने अध्ययन - काल में मेरा यह अनुभव रहा है कि इस विषय पर राजकीय क्षेत्र की इतनी शोध-सामग्री उपलब्ध नहीं है जितनी अन्य आर्थिक विषयों पर उपलब्ध है । किन्तु निजी क्षेत्र में विशेष रूप से यहां के प्राचीन एवं प्रसिद्ध मारवाड़ी व्यापारी घरानों में आज भी उनकी व्यापार पद्धति में प्रयुक्त होने वाली पुरानी बहियां, परवाने, खास रुक्के, इकरारनामे व हिसाब-किताब में प्रयुक्त होने वाले अन्य खुले पत्र आदि बहुतायत से उपलब्ध होते हैं । निजी क्षेत्र की उक्त सामग्री का शोध में विशेष महत्त्व है । इसके अतिरिक्त भी इन व्यापारी घरानों के लोगों से सम्बन्धित अभिनन्दनग्रन्थ, स्मृतिग्रन्थ भी प्रभूत मात्रा में प्राप्य हैं । किन्तु आज का शोध अध्येता उक्त ग्रन्थों को शोध - सन्दर्भ के रूप में स्वीकार करने में हिचकिचाता है । इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि अभिनन्दन और स्मृति ग्रन्थों आदि के लेखक गण प्रायः भावुक होकर लेखन करते हैं जिससे इनमें अनेक बातें तथ्यों से परे भी लिख दी जाती हैं । इस बात में कुछ हद तक सचाई भी है ।
किन्तु "पुरुषार्थ की गाथा" जो श्री छोगमलजी चौपड़ा का एक प्रकार के स्मृतिग्रन्थ ही हैं, उपर्युक्त परम्पराओं से हटकर लिखा हुआ है। मुनि श्री सुखलाल ने इस ग्रन्थ को पांच खण्डों में बांट कर इसका सम्पादन इस तरह से किया है कि मारवाड़ियों पर शोध करने वाला अध्येता इसको सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में स्वीकार कर इसका उपयोग कर सकता है । इसके पहले दो खण्ड आत्मगाथा और आत्मगाथा ( दैनंदिनी) शोध की दृष्टि से काफी उपयोगी हैं। पहले खण्ड में स्वयं श्री छोगमलजी चोपड़ा ने अपनी आत्मकथा लिखी है । इसमें उनके परिवार का पूर्ण इतिहास तो है ही, साथ ही १६वीं सदी के अन्तिम दशकों में राजस्थान की विभिन्न रियासतों से जो मारवाड़ी जीवनयापन के लिए निष्क्रमण कर बंगाल आदि दूरस्थ प्रदेशों में व्यापार-कार्य में संलग्न हो गये थे, उनकी व्यापारिक पद्धति के भी दर्शन होते हैं। राजस्थान से बंगाल का निष्क्रमण - मार्ग, निष्क्रमण किये हुए मारवाड़ियों की व्यापारिक गतिविधियां, आवास व भोजन व्यवस्था, स्कूल व कालेज स्तर की मारवाड़ियों की शिक्षा व्यवस्था, सामाजिक उत्सवों पर अपने
खण्ड १७, अंक ४ (जनवरी-मार्च, ε२ )
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