Book Title: Tulsi Prajna 1992 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 63
________________ मिलते। राव जैतसी छंद, चारणी साहित्य की छन्द विधा की रचना है और इसमें परम्परागत भाषा का प्रयोग है। इसलिये स्वभावत: यह जटिल और क्लिष्ट है । सहज बोधगम्य नहीं है। डॉ० एल० पी० तैस्सितोरि जन्मजात भाषाविद् थे। उन्होंने अनूप संस्कृत लाइब्रेरी में सुरक्षित चारणी साहित्य को देखा परखा था और उन्होंने इस काव्य कृति ने चमत्कृत किया, इसलिये उन्हें संवत् १६२६ की हस्तलिखित प्रति से इसका संपादन उन्होंने किया जो सन् १९२० में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल द्वारा मुद्रित किया गया। उसी प्रकाशन को आधार बनाकर भाई मूलचंद प्राणेश ने काव्य का मूल वैशिष्ट्य उजागर करने का प्रयास किया है। निस्संदेह यह कृति ऐतिहासिक और भाषागत-दोनों दृष्टियों से अतीव महत्त्वपूर्ण है । एक ओर जहां इससे श्यामलदास, कुंवर कन्हैयाजूदेव, किशोरसिंह बार्हस्पत्य, विश्वेश्वरनाथ रेउ और पं० गौरीशंकर ओझा द्वारा प्रमाणित राव बीका की मृत्यु तिथि सं० १५६१ झूठी सिद्ध होती है, वहां दूसरी ओर करणी माता का तथाकथित गौरव और अलौकिक शक्ति का चमत्कार भी ऐतिहासिक वृत्तान्त को असुरक्षित नहीं कर पाता। भाषागत वैभव में यह कृति “गाहा" से शुरू होती है और "कलस" छन्द में समाप्त होती है और पाधड़ी (पद्धटिका) में निबद्ध है जो वयणसगाई के कारण कविकर्म को चार चांद लगा देता है। इसमें 'स' और 'ळ' का विशेष प्रयोग है। तत्सम, तद्भव और देशज शब्दों की भरमार है। कुछ अरबी-फारसी शब्द भी सांस्कृतिक दृष्टि से तुलसीकृत रामायण से पूर्व लिखित इस काव्य में रामनाम की अपार महिमा है। यहां तक की 'हरहर महादेव' के रणघोष के स्थान पर यहां मर्यादा रक्षक राम का नाम है (१) साथी करन्नसाऊ सनाम। रउद्र दल पइठे कहि राम राम ।। (२) जइ राम जैपिय हिन्दू जणेहि । घातिया ताम घोड़ा घणेहि ।। (३) श्री राम जइत सारे निसंक । लोहड़े लसक्कर लियइ लंक ॥ रावतसी के युद्ध में कवि ने १०८ घोड़ों के नाम लिखे हैं। उनमें अनेकों के नाम देवी-देवताओं पर हैं जैसे पाबूपसाव, करणीपसाइ, देवीपसाइ, सूरिजपसाव, चाउण्डपसाव, करणी कुमेर आदि किन्तु युद्ध जीतने का श्रेय शूरवीर सैनिकों को दिया गया है । कवि वीठू सूजा इतिहास का ज्ञाता (वीर)कवि है। उसकी सारी कृति आद्यन्त वीर रस से ओतप्रोत है । उसकी कही कहानी शिलालेखों से परिपुष्ट है। बाबर की मृत्यु के ठीक ५ वर्ष बाद जबकि हुमायूं का राजपाट जमा नहीं था, कामरां ने लाहौर में अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी थी और अपना साम्राज्य फैलाने को उसने पहला आक्रमण बीकानेर पर किया किन्तु उसकी विशाल विजयवाहिनी सेना यहां से मुंह की खाकर रात के अंधेरे में भागी। मुस्लिम इतिहासकार इस बात को छिपा गये किन्तु बीकानेर के चिंतामणि मंदिर में सं० १५९२ को लिखा लेख मौजूद है जो लिखता है कि-"श्री मंडोवर मूलनायकस्य श्री आदिनाथादि चतुर्विंशतिपट्टस्य सं० खण्ड १७, अंक ४ (जनवरी-मार्च, १२) २३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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