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१५९१ वर्षे मुग्दलाधिप कम्मरां पातसाहि समागमे विनाशित परिकरस्य"--इसी तथ्य को वीरू सूजा ने जो युद्ध का प्रत्यक्षदर्शी था जैतसी छन्द में लिखा है। छात्रोपयोगी इस संस्करण के लिए संपादक और प्रकाशक बधाई के पात्र हैं।
-परमेश्वर सोलंकी ५. प्राकृत वाक्य रचना बोध-प्रथम संस्करण-१६६१, मूल्य-१०० रुपये, पृष्ठ संख्या-६०२+१६ । लेखक-युवाचार्य श्री महाप्रज्ञजी । सम्पादक-मुनि श्रीचन्द्र जी 'कमल' । प्रकाशक-जैन विश्वभारती, लाडनूं, नागौर (राजस्थान)।
प्रस्तुत ग्रन्थ में ११८ अध्याय हैं और अन्त में ७ विशिष्ट परिशिष्ट । परिशिष्टों के विषय इस प्रकार हैं-१. प्राकृत शब्दरूपावलि, २. प्राकृत धातुरूपावलि, ३. अपभ्रंश शब्दरूपावलि, ४. अपभ्रंश धातुरूपावलि, ५. अकारादि क्रम से ५४ वर्गों के हिन्दी शब्दों के प्राकृत पर्याय, ६. एकार्थक प्राकृत धातुएं और ७. वैदिक, संस्कृत और प्राकृत की तुलना।
ग्रंथ का प्रणयन आचार्य हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण के आधार पर किया गया है। उसके १११४ सूत्र यहां नियम के नाम से दिये गये हैं। साथ में हिन्दी अनुवाद और उदाहरण कहीं-कहीं टिप्पण और नियम के अन्तर्गत उदाहरणों की संस्कृत छाया भी दी है, जिससे अर्थबोध में सुगमता हो गई है। भिन्न-भिन्न वर्गों के शब्द, हिन्दी से प्राकृत एवं प्राकृत से हिन्दी, अनुवाद करने की विधि भी विस्तार से बतलाई गयी है। सातवें से निन्यानवें पाठ तक जो ५४ वर्गों के शब्द दिये गये हैं, वे अनुवाद करने में परम सहायक सिद्ध होंगे क्योंकि व्यवहारोपयोगी जो शब्द प्राकृत शब्द कोश में उपलब्ध नहीं हैं, उनको संस्कृत शब्दकोश से ले लिया गया है और वृक्ष, फल, औषधि, शाक, धान्य, लता और सुगन्धित पौधों से संबद्ध शब्द निघण्टु से लिये गये हैं। इसके अलावा आधुनिक यन्त्र सम्बन्धी जो शब्द संस्कृत में जोड़े गये हैं, उनका प्राकृतीकरण किया गया है।
शब्दों के आगे ब्रैकिट में उनके उद्गम और तीनों लिंगों के परिचायक संकेत दिये हैं । शब्द, धातु और अव्यय सहित ग्रन्थ के अन्त में अकारादिक्रम से विस्तृत शब्दसूची है। विविधविध शब्दों का इतना अधिक संकलन प्रस्तुत ग्रंथ की बहुत बड़ी विशेषता है, जो अन्य प्राकृत शिक्षा की पुस्तकों में नहीं है। इसलिये इसे प्राकृत शिक्षा का अनुपम ग्रन्थ कहा जा सकता है । मैंने प्राकृत अभ्यास के लिए प्रकाशित जिन कृतियों को देखा है, उनमें यह ग्रंथ श्रेष्ठतम है । यह मागधी, पैशाची, शौरसेनी और अपभ्रंश आदि का परिज्ञान कराने में सक्षम है। फिर भी नियम के रूप में दिये गये १११४ सूत्रों की सूची अकारादि क्रम से प्रस्तुत ग्रन्थ के अन्त में दे दी जाती तो प्राकृत अध्येताओं को बड़ी सुविधा हो जाती।
___सर्वाश में अनेक विशेषताओं से युक्त यह ग्रंथ प्राकृत अध्येताओं और अध्यापकों के लिए अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होगा। अतएव प्रस्तुत ग्रन्थ के विषय में संक्षेप में मैं यही कह सकता हूं--- २३४
तुलसी प्रज्ञा
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