Book Title: Tulsi Prajna 1992 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 33
________________ बीकानेर के राजकीय संग्रहालय में जैन संस्कृति का विराट् प्रतिबिम्ब : जैन-कला-दीर्घा 0 श्री विजयकुमार एवं श्री किशनलाल (बीकानेर के राजकीय संग्रहालय की स्थापना इतालवी विद्वान् डॉ० तेस्सितोरी द्वारा संगृहीत मूर्ति आदि पुरातत्त्व अवशेषों के प्रदर्शन से सन् १९३७ में हुई थी। उन अवशेषों में पल्ल से प्राप्त जैन सरस्वती की दो विश्व प्रसिद्ध प्रतिमाएं भी शामिल थी बाद में जैन कला को और भी अनेकों कलाकृतियां एकत्र हुई। यहां अमरसर और गौराऊ से प्राप्त कांस्य व प्रस्तर प्रतिमाओं का परिचय दिया गया है। -संपादक) राजकीय संग्रहालय, बीकानेर में जैन कलादीर्घा की स्थापना इस क्षेत्र में पुष्पितपल्लवित जैन-कला एवं संस्कृति के विविध आयामों को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से की गई है । सर्वविदित है कि भारतीय चिन्तन एवं मनीषा में जैन दर्शन का अपना कीर्तिमान है जिसकी अनेक संभावनाएं कला के क्षेत्र में अभिव्यक्त हुई हैं । यद्यपि प्राचीनकाल से ही जैन कला कृतियां प्रचुर संख्या में उपलब्ध होने लगती हैं परन्तु मध्ययुगीन पश्चिमी भारत में यह कला विकास के चरर्मोत्कर्ष पर थी। इस काल में गुजरात, सौराष्ट्र तथा राजस्थान में अपनी निजी विशेषताओं को प्रतिबिम्बित करते हुए एक विशेष प्रकार की कला शैली का विकास हुआ। इस कला शैली के अन्तर्गत राजस्थान में पाषाण एवं कांस्य की प्रतिमाओं के विशाल भंडार बसन्तगढ़, अजरी, भीनमाल तथा गुजरात के अकोटा नामक स्थानों से उपलब्ध हुए। बीकानेर क्षेत्र से भी कुछ दुर्लभ नमूने मिले। तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर कला-सौष्ठव में बीकानेर क्षेत्र की ये प्रतिमायें मथुरा जैन कला के समकक्ष रखी जा सकती हैं। पश्चिमी राजस्थान की इस जैन कला को विराट् व्यक्तित्व प्रदान करने के उद्देश्य से राजकीय संग्रहालय, बीकानेर में एक नयी "जैन-कला-दीर्घा" की स्थापना की गई है। बीकानेर से लगभग १०० किलोमीटर दक्षिण-पूर्व की ओर आबाद अमरसर नामक ग्राम से प्राप्त १४ धातु प्रतिमाएं इस दीर्घा में प्रदर्शित हैं। १० प्रतिमाओं पर लेख भी उत्कीर्ण हैं । १०-११ वीं शताब्दी की इन धातु प्रतिमाओं में कुछ तो कला की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण हैं यथा-पंचतीर्थी, पार्श्वनाथ (सप्तफणत्रितीर्थी), स्थानक देवी प्रतिमा आदि । यहीं से प्राप्त दो पाषाण प्रतिमायें भी इस दीर्घा की शोभा बढ़ा रही हैं। इसी क्रम में नागौर जिले के गौराऊ नामक गांव से निकली १०-११ वीं शताब्दी की २८ जैन कलाकृतियों का उल्लेख भी आवश्यक है। इनमें १० धातु प्रतिमाएं हैं तथा कुछ पर लेख भी उत्कीर्ण हैं जो वि० सं० १०२३ से १०६५ तक हैं । ज्ञात कला खण्ड १७, अंक ४ (जनबरी-मार्च, ६२) २०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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