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श्री भीखू जसरसायण
सिद्ध साधु प्रणमीसखर, ऑणी अधिक उलास । सुखदायक आखूं सरस, बारूं भिखुविलास ॥१॥
गुणवंतनां गुण गावतां, उत्क्रष्टी पद तीर्थंकर पांमीये, कह्यो
सासणवीर तणे समण, कहया अधिक अधिकाय | गुण बुद्धितप अरू ज्ञान करि, चउदश सहस सुहाय ॥३॥
सर्वज्ञ जिन मुनि सप्तसय, अवधि तेरसय आण । मन पज्जवसयपंचमुनि, चिउ सयवादी पिछाण ॥४॥
रसाण आय । सुज्ञातामांहि ||२||
पूर्वधर त्रिण सयपवर, वैक्र सप्तसयवाध । समणी सहस्र छत्तीससुद्ध, चउदस सयनिरूपाधि ॥ ५ ॥
सुधर्म जंबू तिल कसिव, हिवडां पंचम काल में,
चतुर्थ आराना मुनि, धिन धिन भीखू चरणधर,
अन्यमुनि अमरविमांण । भीखू प्रगट्या भांण ॥ ६ ॥
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नयणां देख्या नाहि । प्रत्यक्ष दर्शन पाय ॥७॥
किहां उपना जनन्म्याकिहां पर भवपद किहां पाय । किया चौमासाकिण विधै, सांभलजो सुखदाय ||८||
विउ सयसीत्तर वर्ष लगे नंदीवर्धन निहाल । तापी विक्रम तणौं, सांप्रतसंवत् संभाल ||६||
- राज्यभक्त प्रिंटिंग प्रेस, मुंबई में छपी प्रति से
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तुलसी प्रशा
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