Book Title: Tulsi Prajna 1992 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 44
________________ २१४ श्री भीखू जसरसायण सिद्ध साधु प्रणमीसखर, ऑणी अधिक उलास । सुखदायक आखूं सरस, बारूं भिखुविलास ॥१॥ गुणवंतनां गुण गावतां, उत्क्रष्टी पद तीर्थंकर पांमीये, कह्यो सासणवीर तणे समण, कहया अधिक अधिकाय | गुण बुद्धितप अरू ज्ञान करि, चउदश सहस सुहाय ॥३॥ सर्वज्ञ जिन मुनि सप्तसय, अवधि तेरसय आण । मन पज्जवसयपंचमुनि, चिउ सयवादी पिछाण ॥४॥ रसाण आय । सुज्ञातामांहि ||२|| पूर्वधर त्रिण सयपवर, वैक्र सप्तसयवाध । समणी सहस्र छत्तीससुद्ध, चउदस सयनिरूपाधि ॥ ५ ॥ सुधर्म जंबू तिल कसिव, हिवडां पंचम काल में, चतुर्थ आराना मुनि, धिन धिन भीखू चरणधर, अन्यमुनि अमरविमांण । भीखू प्रगट्या भांण ॥ ६ ॥ Jain Education International नयणां देख्या नाहि । प्रत्यक्ष दर्शन पाय ॥७॥ किहां उपना जनन्म्याकिहां पर भवपद किहां पाय । किया चौमासाकिण विधै, सांभलजो सुखदाय ||८|| विउ सयसीत्तर वर्ष लगे नंदीवर्धन निहाल । तापी विक्रम तणौं, सांप्रतसंवत् संभाल ||६|| - राज्यभक्त प्रिंटिंग प्रेस, मुंबई में छपी प्रति से For Private & Personal Use Only तुलसी प्रशा www.jainelibrary.org

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