Book Title: Tulsi Prajna 1992 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 53
________________ जिणइ, तत्तो अक्खेसु कुमारप्राधान्यात् देवी अजिए ति अजिओ से णामं कयं)। (ख) आवश्यक चूणि (द्वितीय) पत्र १०-द्यूतं रमंति पुब्वं राया जिणियाइआ, गब्भे आभूते माता जिणति सदावित्ति तेण अक्खेसु अजित त्ति अजितो जातो। ५. (क) आवश्यक चूणि (द्वितीय) पत्र ६-अजितो त्ति अजितो परीसहोवसग्गेहि सामण्णं । (ख) आबश्यक वृत्ति (द्वि०) पृ० ८-परीषहोपसर्गादिभि नजितोऽजितः, सर्व एव भगवन्तो यथोक्तस्वरूपा इति । ६. (क) आवश्यक नि० गा० १०८१ तथा उसकी वृत्ति अभिसंभूआ सासत्ति संभवो तेण वुच्चई भयवं । (गब्भगए जेण अब्भहिया सस्सणिप्फत्ती तेण संभवो)। (ख) आवश्यक चूणि (द्वितीय) १०-अब्भधिया सासाणं सह जात त्ति । ७. (क) आवश्यक चूणि (द्वितीय) पत्र १०–संभवे सामण्णं चोत्तीसबुद्धातिसेसा सब्वेसु वि संभवंति अतिसया गुणा य । (ख) आवश्यक वृत्ति (द्वितीय) पृ० ८-संभवन्ति प्रकर्षेण भवन्ति चतुस्त्रिशद तिशयगुणा अस्मिन्निति संभवः, सर्व एव भगवन्तो यथोक्तस्वरूपा इति । ८. (क) आ० नि० गा० १०८१ तथा उसकी वृत्तिअभिणंदइ अभिक्खणं सक्को अभिणंदणो तेण । (गभप्पभिइ अभिक्खणं सक्को अभिणंदियाइओ, तेण से अभिणंदणो त्ति णामं कयं)। (ख) अभिणंदणे अभिमुहा अभिमुख्ये 'टुनदि समृद्धौ' अहवा सव्वे वि देवेहिं आणं दिया, विसेसेणं भगवतो माया गब्भगए। ६. आ० वृत्ति (द्वि) पृ० ८-अभिनन्द्यते देवेन्द्रादिभिरित्यभिनन्दनः, सर्व एव यथोक्त स्वरूपा इति । १०. (क) आ० नि० गा० १०८२ तथा उसकी वृत्ति जणणी सव्वत्थ विणिच्छएसु जाया सुमइ त्ति तेण सुमइ जिणो। (जणणी गब्भगए सव्वत्थ विणिच्छएसु अईव मइसंपण्णा जाया, दोष्टं मवत्तीणं मयपइयाणं ववहारो छिन्नो । ताओ भणियाओ-मम पुत्तो भविस्सइ जो जोव्वणत्थो एयस्सऽसोगवरपायवस्स अहे ववहारं तुभं छिदिहि । ताव एगा इयाओ भवइ, इयरी भणइ-एवं भवतु, पुत्तमाया णेच्छइ, ववहारे छिज्जउ त्ति भणइ, णाऊण तीए दिण्णो, एवमाईगब्भगुणणं ति सुमई। (ख) आ० चू० (द्वि) पत्र १०-गब्भ गते भट्टारए दोण्हं सवत्तीणं छम्म । सितो ववहारो छिण्णो-एत्थं असोगवरपादवे एस मम पुत्तो महामती छिदिहिति, ताए जाव त्ति भणियाओ, इतरी भणिति-एवं होतु, पुत्तमाता णेच्छति त्ति णातूणं खण्ड १७, अंक ४ (जनवरी-मार्च, ६२) २२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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