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नत हो गए अतः उनका नाम 'नमि' रखा गया ।" जिसने परीषह और क्रोधादि को झुका दिया है वह नमि है यह व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है ।"
२२. अरिष्टनेमि --- भगवान् अरिष्टनेमि जब गर्भ में आए तब उनकी माता ने स्वप्न में एक अरिष्टरत्नमय नेमि (चत्र) उछलता हुआ देखा अतः उनका नाम 'अरिष्टनेमि' रखा गया ।" जिसने अप्रशस्त को नमा दिया है वह अरिष्टनेमि है यह व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है ।
२३. पार्श्व - भगवान् पार्श्व जब गर्भ में आए तब स्वप्न में उनकी माता ने गर्भ के प्रभाव से घोर अंधकार में भी एक सात सिर वाले सर्प को शय्या के पास से जाते हुए देखा । उसने शय्या से बाहर निकली हुई राजा की भुजा को शय्या पर लाते हुए कहा - यह सर्प जा रहा है । राजा ने पूछा- तुमने कैसे जाना ? उसने कहा मैं देख रही हूं | राजा ने दीपक के प्रकाश से देखा तो सर्प ही दिखाई दिया। राजा ने सोचाइस घोर अन्धकार में भी इसने गर्भ के अतिशय प्रभाव से ही सर्प को देखा है अतः उन्होंने अपने पुत्र का नाम पार्श्व रखा । " जो सभी भावों ( पदार्थों) को देखता है वह पार्श्व है - यह व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है ।"
२४. वर्धमान - भगवान वर्धमान जब गर्भ में आये तब से ज्ञातकुल में विशेषरूप धन की वृद्धि हुई अतः उनका नाम 'वर्धमान' रखा गया ।" जन्म से ही जिनका ज्ञान आदि बढता जाता है वह वर्धमान है यह व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है "
संदर्भ
१.
आवश्यक वृत्ति (द्वितीय भाग) पृ० ८ - -उसभोत्ति वा वसहोत्ति वा एगट्ठ । २. (क) आवश्यक निर्युक्ति गाथा १०८० तथा उसकी वृत्ति - उरूसु उसभलंछणं उभं सुमिमि तेण उसमजिणो । ( जेण भगवओ दोसु वि ऊरुसु उसभा उप्पराहुत्ता, जेणं च मरुदेवयाए भगवइए चोदसण्हं महासुमिणाणं पढमो उसभो सुमिणे दिट्ठो त्ति, तेण तस्स उसभोत्ति णामं कयं से सतित्थगराणं मायरो पढमं गयं तओ वसहं एवं चोट्स ) ।
(ख) आवश्यक चूर्णि ( द्वितीय भाग) पत्र ६ – ऊरुसु दोसु वि भगवतो उसभा ओपरामुहा तेण निव्वत्तबारसाहस्स नामं कतं उसभो त्ति, किं च-पढमो महासुमिणे दिट्ठो, सेसाणं म । तीहिं पढमं गतो ।
८-
३. (क) आ० वृत्ति (द्वितीय भाग) पृ० - वृष' उद्वहने समग्र संयमभारोद्वहनाद् वृषभ:, सर्व एव भगवन्तो यथोक्तस्वरूपा इति ।
(ख) आ० चू० (द्वि०) पत्र ६ – वृष - उद्वहने, उब्बूढं तेन भगवता जगत्संसारमग्गं
तेन वृषभ इति ।
२२२
४. (क) आ०
नियुक्ति गा० १०८० तथा उसकी वृत्ति
अक्सु जेण अजिआ जणणी अजिओ जिणो तम्हा । ( भगवओ मायापियरो जूअं मंति, पडमी राया जिणियाइओ, जाहे भगवंतो आयाया ताहे ण राया,
देवी
तुलसी प्रज्ञा
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