________________
सामग्री में पार्श्वनाथ, आदिनाथ के अतिरिक्त चंवरधारी गंधर्व तथा टोंटीदार कटोरे आदि उल्लेखनीय हैं। यहां से भी तीर्थंकरों की ३ पाषाण प्रतिमायें प्रकाश में आयी हैं । १०.११ वीं शतान्दी की ज्ञात यह कला-सामग्री कला की दृष्टि से बहुत परिष्कृत है। इनके निर्माता शिल्पियों ने वर्षों तक शिल्प-साधना की होगी।
इनके अतिरिक्त १० वीं से १६ वीं शताब्दी तक की अनेक पाषाण प्रतिमाओं ने भी इस कला-दीर्घा मे स्थान पाया है, जिनमें से अधिकांश जैन चिंतामणि मंदिर, बीकानेर से प्राप्त की गयी हैं । कुछ प्रतिमायें इतालवी विद्वान् डॉ० एल० पी० तेस्सितोरि द्वारा संग्रह की गई थीं। जैन कलादीर्घा में प्रदर्शित प्रमुख प्रतिमाओं का विवरण इस प्रकार है:
१. धातु प्रतिमायें १.पंचतीर्थी
ऊंचाई लगभग १२ इन्च । पीछे पांच पंक्तियों का संवत् १०६३ का लेख है । प्रमुख देव ध्यानस्थ मुद्रा में बैठे हैं तथा कन्धों पर बाल गिर रहे हैं जिसके द्वारा ज्ञात होता है कि यह प्रतिमा आदिनाथ की है । इनके दोनों ओर कायोत्सर्ग मुद्रा में एक-एक तीर्थङ्कर तथा उनके नीचे मुख्य मूर्ति के दाईं ओर शिशुक्रीडारत अम्बिका व बाई ओर धनद कुबेर आसनस्थ प्रदर्शित हैं। आसन के नीचे एक पंक्ति में कमशः बैठे हुए नवग्रहों का प्रदर्शन अति भव्य है । यहां पर ८ वी आकृति राहु की तथा ६ वीं सर्जपुच्छ सहित केतु की है। मूर्तिकला की दृष्टि से ११ वीं शती ई० की यह सुन्दर प्रतिमा है। २. पार्श्वनाथ त्रितीर्थो
ऊंचाई में साढ़े नौ इञ्च । इस विशाल सप्तफणा पार्श्वनाथ प्रतिमा के पार्श्व भाग में तीन पंक्तियों का लघु लेख अंकित है। लेख ६-१० वीं शती ई० की कुटिल लिपि में उत्कीर्ण है तथा इस कथन की पुष्टि नीचे अष्टग्रह की विद्यमानता द्वारा होती है। बाद की धातु प्रतिमाओं में ग्रहों की संख्या ६ उपलब्ध होती है । धातु मूर्तिकला की दृष्टि से यह भी सुन्दर प्रतिमा है। पाश्वनाथ के दाहिनी ओर कायोत्सर्ग मुद्रा में आदिनाथ प्रस्तुत किये गये हैं। नीचे बांई ओर अम्बिका सिंहारूढ़ है तथा दाहिनी ओर गजारूढ़ कुबेर । कुबेर ने अपने बांये हाथ में "नकुलक"--नोनी (रुपयों की थैली) तथा दाहिने हाथ में बिजोरा फल धारण कर रखा है। ३. पार्श्वनाथ
सप्तफणा प्रतिमा, ऊंचाई ६ इन्च । मूर्ति के बांयी ओर शिशु क्रीडा में अम्बिका और दाहिनी ओर कुबेर उत्कीर्ण हैं । नीचे एक पंक्ति में नवग्रहों का प्रदर्शन किया गया है। ४. पार्श्वनाथ
सप्तफणा त्रितीर्थी, ऊंचाई ६ इञ्च । पीछे संवत् ११०४ का लघुलेख । नीचे चरण १. गौराऊं से निकली उक्त कला-सामग्री अभी तक स्थल पर ही रखी हुई हैं। इन्हें
संग्रहालय के लिए प्राप्त करने हेतु प्रशासनिक स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं । दीर्घा में उक्त सामग्री के छाया चित्र प्रदर्शित हैं।
-
२०४
तुलसी प्रज्ञा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org