Book Title: Tulsi Prajna 1992 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ नक्षत्र के समानान्तर दृश्यमान थीं । इन तीन स्थितियों में कृत्तिकाओं की पहली स्थिति में (बी. सी. २३०० की) जबकि वे भूमध्य रेखा से सटी मेष राशि में होती हैं तो प्रायः वही परिदृश्य बनता है जो शतपथ ब्राह्मण में विवणित है । अर्थात् वह परिदृश्य आज से २३००+१९६०४२६० वर्ष पुराना सिद्ध होता है । शतपथ में वर्णित कृत्तिकाओं की स्थिति को सही समझकर स्व० शंकरबालकृष्ण दीक्षित ने सन् १६०० में वेध किया था और कृत्तिकाओं को विषुवत् रेखा से ६८ अंश ऊपर पाया था जिससे कालमान ४६८८ वर्ष बनता है ।१९ ६. पुराणों के प्रसंग पुराणों में सप्तर्षि-गणना के कई प्रसंग हैं। उन सबका समाहार निम्न प्रकार हो सकता है सप्तर्षयस्तदा प्राहुः प्रतीपे राज्ञि वै शतम् । सप्तविंशः शतैर्भाव्या अन्ध्राणां ते त्वया पुनः॥१॥ सप्तविंशति पर्यन्ते कृत्स्ने नक्षत्र मण्डले । सप्तर्षयस्तु तिष्ठन्ति पर्यायेण शतं शतम् ॥२॥ सप्तर्षीणां युगं ह्य तद्दिव्यया संख्यया स्मृतम् । मासा दिव्याः स्मृता षट् च दिव्याब्दानि तु सप्त हि॥३॥ सा सा दिव्या स्मृता षष्टिदिव्याह्नाश्चैव सप्तभिः । तेभ्यः प्रवर्तते कालो दिव्यः सप्तर्षिभिस्तु वै ॥४॥ सप्तर्षीणां तु यो पूर्वी दृश्येते उत्तग दिशि । तयोर्मध्ये तु नक्षत्रं दृश्यते यत्समं दिवि ॥५॥ तेन सप्तर्षयो युक्ता ज्ञेया व्योम्नि शतं समाः । नक्षत्राणामृषीणां च योगस्यैतन्निदर्शनम् ॥६॥ सप्तर्षयो मघा युक्ताः काले पारिक्षिते शतम् । आन्ध्रान्ते च चतुर्विशेभविष्यन्ति मते मम ।।७।। -वायुपुराण (६६.४१८-४२३) ब्रह्माण्डपुराण (३.७४.२२५-२३६) मत्स्यपुराण (२७२.३८-४३) भागवतपुराण (१२.२.२७-३१) विष्णुपुराण (४.२४.१०५-११६) इनमें पहला श्लोक वायुपुराण में निम्न तीन श्लोकों के बाद दिया है महापद्माभिषेकात्तु जन्म यावत् परिक्षितः । एवं वर्ष सहस्र तु ज्ञेयं पंच शतोत्तरम् ॥४१५।। पौलोमास्तु तथान्ध्रास्तु महापद्मान्तरे पुनः । अन्तरं तच्छतानष्टौ षट्त्रिंशच्च समाः स्मृताः ॥४१६॥ तावन्कालान्तरं भाव्यमान्ध्रान्तावापरिक्षितः । भविष्ये ते प्रसंख्याताः पुराणः श्रुषिभिः ।।४१७॥ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112