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जैन दर्शन और पाश्चात्य मनोविज्ञान की तुलना
बी० रमेश जैन
यूरोपीय पुनर्जागरण के बाद तीन मनीषी यूरोप में उभरे थे-१. मार्क्स २. आइन्स्टाइन व ३. फ्राइड । मार्स ने साम्यवाद, आइन्स्टाइन ने गणित व भौतिक विज्ञान एवं सिगमन फाइड ने मनश्चिकित्सा में अनुसंधान कर संसार को नये आयाम प्रदान किए । सिगमन फाइड के मनोविश्लेषण के सिद्धान्तों में प्रमुख है-१. दमन २. अचेतन ३. लुब्धा ४. व्यक्तित्व विन्यासन और ५. स्वप्न का सिद्धांत ।
इन सिद्धान्तों को सार रूप में कहे तो फ्राइड के अनुसार, मन के तीन स्तर हैंचेतन, अवचेतन व अचेतन । चेतन मन स्थूल या सतही है। इस पर जो भी विचार व इच्छाएं उभरती हैं उनमें से जिन विचार व इच्छाओं को अप्रिय, प्रतिकूल या सामाजिक मर्यादाओं के कारण दबा देते हैं, वे विचार व इच्छाएं अचेतन में चले जाते हैं । जो अवसर पाकर उभर आते हैं। कभी-कभी ये दमित इच्छाएं व विचार, मानसिक व शारीरिक रोगों का कारण बन जाते हैं। इसी तरह हमारे व्यक्तित्व के भी तीन पक्ष होते हैं । १. इदम् २. अहम् ३. नैतिक मन । इदम् में सभी प्रकार की इच्छायें जन्म लेती हैं, अहम् का संबंध संसार की यथार्थता से होता है, और नैतिक मन द्वारा हम उचित, अनुचित, आदर्श मान्यताएं स्थापित करते हैं। नैतिक मन द्वारा जब अनुचित व अप्रिय विचारों व इच्छाओं का दमन किया जाता है तब वे दमित इच्छाएं अचेतन मन में पहुंच जाती हैं।
फाइड के स्वप्न सिद्धान्त के अनुसार अतृप्त व दमित इच्छायें (इदम् में निहित) स्वप्न में उन्मुक्त हो जाती हैं ।
लेकिन स्वप्न में इच्छाओं की पूर्ति प्रत्यक्ष रूप से न होकर अप्रत्यक्ष रूप से होती है । अर्थात् प्रतीक, कल्पना इत्यादि के माध्यम से वे दमित इच्छायें पूर्ण हो जाती हैं।
कभी-कभी विचार या कामनायें इतनी तीव्र होती है कि स्वप्न में भी ने पूरी नहीं होती तब मानसिक व शारीरिक रोग का रूप धारण कर लेती है । जिसमें मिरगी के दोरे, हीन भावना, मानसिक तनाव, हिस्टीरिया, रक्त संचालन का एकाएक बढ़ जाना या एकदम कम हो जाना, हृदय का, फेफड़ों का, गुर्दो का व लीवर का ठीक ढंग से कार्य न करना, आमाशय में अति एसिड का उत्पन्न हो जाना, हाथ पैर को लकवा मार जाना जैसे रोग होने की संभावना रहती है।
अब प्रश्न उठता है कि वे अप्रिय इच्छाएं या विचार मन में उठते ही क्यों हैं जिससे खण्ड १७, अंक ४ (जनवरी-मार्च, ६२)
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