Book Title: Tulsi Prajna 1992 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 17
________________ सप्तर्षयस्तदा प्राहुः प्रतीपे राज्ञि वै शतम् । सप्तविंशै शतं भव्यिा अन्धाणांते त्वया पुनः ॥४१८॥ यह प्रसंग बहुत स्पष्ट और प्रामाणिक है। परिक्षित जन्म अथवा महाभारत युद्ध समाप्ति से महापद्म नंद के अभिषेक तक १५०० वर्ष और महापद्म अभिषेक से आन्ध्रों के शासनान्त तक ८३६ वर्ष-कुल २३३६ वर्ष पूरे होते हैं। पुराणकार कहते हैं कि राजा प्रतीप (शांतनु के पिता और भीष्म के पितामह) के समय सप्तर्षियों का आश्लेषा भ्रमण समाप्त हुआ और मघा पर्याय शुरू हुआ। जब आन्ध्रों का शासन समाप्त होगा तो वे २७ सौवें वर्षों में होंगे। यहां ३६४ (२७००-२३३६) वर्षों का ब्यौरा नहीं है। इसीलिये आगे ४२३वें श्लोक में २४वें शतक का उल्लेख है सप्तर्षयो मवा युक्ताः काले पारिक्षिते शतम् । अन्ध्रान्ते च चतुर्विशे भविष्यन्ति शतंसमाः ॥ अर्थात् राजा प्रतीप के समय सप्तर्षियों ने मघा नक्षत्र में प्रवेश किया था और परिक्षित के समय अपना 'शतम् पूरा किया। वे आन्ध्रों के शासनान्त पर २४वें शतक में होंगे । यह सही है । क्योंकि वास्तव में महापद्म अभिषेक से ८३६ वर्ष बाद आन्ध्र साम्राज्य को उज्जनी नरेश विप्रशूद्रक ने गंभीर चुनौती दी थी और अपना विशाल राज्य स्थापित कर कलिसंवत् २३४५ में (उपर्युक्त अन्तर २३३६ से नौ वर्ष बाद) अपना शूद्रकाब्द शुरू किया था।" किन्तु विप्रशूद्रक का साम्राज्य शीघ्र ही विखंडित हो गया और आन्ध्र पुनः सत्ता में आ गए। पुनः आन्ध्रों की सत्ता का अन्त, पाटलीपुत्र में जन्में गुप्तों के नये राजवंश के शासक समुद्रगुप्त (यूनानी लेखकों का सेण्डाकोटस) ने विक्रमी संवत् पूर्व ३०२ वर्ष में किया जब उसने आन्ध्र भृत्यों सहित सभी छोटे-बड़े शासकों को विजयकर (प्रयाग प्रशस्ति अनुसार) अपना अखण्ड साम्राज्य स्थापित किया। इस प्रकार सप्तर्षियों का मघा पर्याय राजा परिक्षित के शासन के दूसरे वर्ष३०४३-३६ युधिष्ठर शासन +२ परिक्षित शासन=३००५ वर्ष विक्रम पूर्व में समाप्त हुआ और उससे २७०० वर्ष बाद अर्थात् ३०५ वर्ष विक्रम पूर्व में आन्ध्र सत्ताविहीन हुए अथवा सप्तर्षियों का २७०० वर्षों का परिभ्रमण पूरा हुआ। उसके बाद अर्थात् ३०५ वर्ष विक्रम पूर्व + विक्रम संवत्सर के २०४८ वर्ष कुल २३५३ वर्ष बीते हैं जो मघा नक्षत्र सहित २४वें नक्षत्र (अश्वनी से छठे) आद्रा का तीसरा चरण है और प्रत्यक्ष वेध सिद्ध है। इण्डियन एण्टीक्वेरी (जिल्द २०) में सप्तर्षि संवत् के चार प्रयोग दिए हैं। चम्बा के लेख में वि० सं० १७१७ के तुल्य सप्तर्षि संवत् ३६ दिया है। कैयट रचित देवीशतक टीका लेखन काल-'वसु मुनि गगणोदधि'-४७०८ कलिसंवत् तुल्य ५२ वर्ष तथा ध्वन्यालोक-प्रशस्ति में 'सप्तर्षि संवत् ४६५१ आश्वयुज कृष्ण सप्तमी मंगलवार' दिया है। साथ ही वि० सं० १८५० के पंचांग की प्रतिलिपि भी दी है जो इस प्रकार हैखण्ड १७, अंक ४ (जनवरी-मार्च, ६२) १८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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