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लोकसामान्याधिकार
अतो लोकस्य पूर्वापरेण दक्षिणोत्तरेण च परिषि दर्शयन्नाहपुरुषावरेण परिही उगुदाल साहियं तु रज्जुणं । दपिखणउत्तरदो पुण पादाल होंति रज्जूर्ण || १२१ ।। पूरे परिधिः एकोनचत्वारिंशत् साधिकं तु रज्जुनाम् । दक्षिणोत्तरतः पुन: द्वाचत्वारिंशत् भवन्ति रज्जूनाम् ॥ १२१ ॥
गाथा १२१
पुरुषः । पूर्वापरेण परिभिः एकोनमिशस् ३० साधिका स्वारिशद भवन्तिनाम् ॥१२१॥
विशेषाचं :- लोक की
पूर्व पश्चिम परिधि ३९६२४ राजू तथा दक्षिणोतर परिधि ४२
लोक की पूर्व पश्चिम और दक्षिणोत्तर परिधि को दर्शाते हुए कहते हैं
गावार्थ :- लोक की परिधि पूर्व पश्चिम अपेक्षा ३९६६३ राजु है तथा दक्षिणोत्तर ४२ राजू है ।।१२।।
राजु है; कारण कि लोक दक्षिणोत्तर सर्वत्र ७ राजू चौड़ा है। ( ऊपर भी ७ राजू चौड़ा है और नोचे भी ७ राजू चौड़ा
है ) लोक की ऊँचाई १४ राजू है अतः ऊपर नीचे की सात सान राजू चौड़ाई और दोनों पार्श्व भागों की १४, १४ राजू ऊँचाई जोड़ने से (७+७ + १४+ १४ ) ४२ राजू दक्षिणोत्तर परिधि होती है ।
दक्षिणोनर परिधि का चित्रण:
४ राज्
७२७ राज्
१.श.
७ राज
१रा.
राजू
देवराजू
रा
जुना, सिलोसरतः पुन
१३५
७ राजू
त
आजू