Book Title: Triloksar
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 743
________________ गाथा:११५ मरतियंग्लोकाधिकार ६६ दस । विगतीपा गुणपक्षाश ५.. योजनानि गत्वा विदिग्मता शरिणतपत्राय ५०० योनमानि गरवा पन्तरविणता पशगुरिणतपञ्चपनामा ५५० छोमनानि गत्वा पिरिणिधिपताश्च यशगुणितष्टि १०० योजनानि गत्वा सिन्ति । तेषां विस्तार कमेण पतयोजनानि १- पश्चपञ्चाश ५५ खोबमानि पश्वाशधोबनानि ५० पञ्चविंशतियोजनानि २५ भवन्ति । EUR दोनों तटों से उन द्वीपों का अन्तर और उनका (दोपों का विस्तार क्रम पूर्वक गाथा:-वे द्वीप समुद्र तट से जल को और यया क्रम व गुरणा पचास ( पोष सौ), दवा गुणा पचास ( ५.०), दश गुणा पचपन ( ५५० ) और दशगुणा साठ (20) योजन भीतर जाकर हैं। उन द्वीपों का विस्तार भी कम से १. योजन, पचपन मोगन, पचास योजन और पच्चोस योजन प्रमाण है ।। ६१४॥ विशेषार्ग:--दोनों समुद्रों के अभ्यन्तर तटों से बाहर की मोर और बाह्यतटों मे भीतर की और दिशा सम्बन्धो, १.., ... योजन विस्तार वाले ८ द्वीप ५०० योजन दूर ( जल को ओर ) माकन हैं । विदिशा सम्बन्धो ५५, ४५ योजन विस्तार वाले द्वीप ५०० योजन दूर हैं। अन्तच विशा सम्बन्धी, ५०, ५० योजन विस्तार वाले १६ द्वीप ५५० योजन दूर है और पर्वतों के निकटवर्ती, २५, २५ योजन विस्तार वाले १६ द्वीप ६०० योजन दूर जाकर स्थित है। तेषो द्वीपानां जलाध पर्यषरचोदयमाह-- इगिममधे पणणउदिमतुंगो मोलगुणमुवरि कि पयदे । दुगजोगे दीउदमो सदिया जोयणुग्गया जलदो ।९१५॥ एकगमने पश्चनवतितुङ्गः षोडशगुणमुपरि कि प्रकृते । द्विकयोगे दीपोदयः सवेदिका योजनोद्गता जलतः ॥ १५ ॥ इगि । भूमी २ला प्रषोमुखं १००.० शेषयित्वा १६....पोंकृत्य १५००० परवातावधानो १५... सहनोदये १०.. एकपोननहानी रियानुबय इति सम्पास्यापतिते एकपोजनगमने जलोरयः प्यात एवं घरमा एकयोजनगमने १ यद्यपोजनपचनवतितममागः न तुङ्गः स्यात् तवा पशताबि योजनगमने ५०० । ५०० । ५५० । ६०० किमान तुङ्गा पति सम्पारय भस्वा शेधे सर्वत्र पच्चभिरपतिते सति । पञ्चशतारियोजनगते तत्र साषोडलोवयः स्पान ५ो । ५ । ५ शेष ।मे । इस उपरि बलोदप पानीयते-बोडशसहस्रोदये १६००० एतावतानो ९५००० एकयोजनोबये किमिति सम्पास्यापतिले एकयोजनोपयहानि: स्पात पुस्मा एमावरक्षेत्रगतो. पोकयोजन जलोरपस्ता एकपो जनगमने किमिति सम्पातिते लन्ध एकयोगनगमने उपरि जलोत्यः

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