Book Title: Triloksar
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 796
________________ त्रिलोकसार गाथा । ९६४-६८४ - १८६ संयुक्त मणिमय तीन प्रारम्भ कर प्रथम ओर विशेषार्थ :- समस्त जिन भवनों के चारों ओर चार गोपुर द्वारों से कोट हैं। प्रत्येक चीधी में एक एक मानस्तम्भ और नव नव स्तूप हैं। बाहर से द्वितीय कोट के अन्तराल में बन हैं। द्वितीय और तृतीय कोट के अन्तराज में ध्वजाएँ तथा तृतीय कोट के बीच चैत्यभूमि है। ७५२ जिणमवणे महसया गमगिद्दा स्यणथंभवं तत्थ । देवच्छेद हमो दुगमहचउबासदीहुदो || ९८४ ॥ जिभवनेषु अष्टतानि गर्भगृहारिण रत्नस्तम्भवान् तत्र । देवच्छंदो हैम: द्विकाष्टचतुर्यासदीर्घोदयः ॥ ६८४ ॥ जिए। तेषु वनभवष्योत्तरशतप्रमिलानि गर्भगृहारिण सन्ति । तत्र जिनभवनमध्ये रत्नसम्भवान् हेममयद्विकाष्ट चतुर्योजनव्या सवीद्यदयो वन्वोऽस्ति ॥ ६४ गाथार्थ :- उन समस्त जिन भवनों में प्रत्येक में एक सो बाठ गर्भगृह है तथा जिभवनों के मध्य में रत्नों के स्तम्भों से युक्त स्वर्णमय एक एक मण्डप है जिसकी लम्बाई ८ योजन, चौड़ाई दो योजन और ऊँचाई चार योजन प्रमाण है । सिंहासनादिसहिया विणीलकुंतल सुवञ्जमपदंता । विद्दुमहरा किसलयसोहायरहत्थपायतला ।। ९८५ ।। दस तालमाणलक्खणभरिया पेक्खंत इव वदंता वा । पुरुजिणतुंगा पडिमा रगणमया बहू अहियस्या ||९८६ ।। सिंहासनादिसहिता विनीलकुन्तलाः सुवज्रमयदग्तरः । विद्रुमाधराः किसलयशोभाकर हस्तपादतलाः ॥ ६८५ ॥ दशतालमानलक्षणभरिताः प्रेक्ष्यमाणा इव वदंत इव । पुरुजिनतुङ्गाः प्रतिमा: रत्नमय्यः अष्टाधिकशताः ।। ६८६ ।। सिहासरणादि सिहासनादिसहिता विनीलकुन्तलाः सुवञ्चन्यदन्ताः वियाधराः किसलयशोभाकरहस्तपादतलाः ।। ६८५ ।। दस । वशतालमामलक्षरण भरिताः प्रेक्षमाला इव वयं इव पुरुषजिनतुङ्गाः ५०० रनमध्यः पट्टाधिकशतमिताः जिनप्रतिमास्तेषु गर्भगृहेष्वे के काः सन्ति ॥ ६८६ ॥ गार्ग:- उन गर्भगृहों के मध्य में सिहासनादि से सहित तथा विशेष नीले केश, सुन्द वस्त्रम दाँत, मुँगा सहा ओठ तथा नवीन कपल की शोभा को धारण करने वाले हैं हाथ और पैर के सलमान जिनके दश ताख प्रमाण लक्षों से भरी हुई, देख रही हों मानों, बोल ही रहीं हो मानों और

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