Book Title: Triloksar
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 809
________________ पावा: १.१४ नरसियातलोकाधिकार .. नन्दादिवापीना मानस्तम्मानां च विशेषस्वरूपमाह गंदादीय तिमेहल तिवीढया मंति धम्मविहवापि । पढिमाघिडियमका वणभूचठवीहिमज्झन्दि ।। १.१४ ।। नन्दादिका निमेखलाः त्रिपीठका भान्ति प्रविमा पपि। प्रतिमाधिष्ठितमूर्षानः बनभूचतुवीमध्ये ॥ १०१४ ॥ वंदा । प्रागुक्ता ममाविषोमवाप्यस्त्रिमेखलायुक्ता भान्ति । भूपरिणषिचतुर्वोषीमध्ये प्रतिमाधिष्ठितमूर्षानः धर्मविभवा पपि मानस्तम्भा इस्य: त्रिपाठपुक्ता भान्ति ॥ १०१४ प्रति धोनेमिनाबाविरचिते निसोकसारे मरसिर्पग्लोकाधिकार ॥६॥ नन्दादि वापियों और मानस्तम्भों का विशेष स्वरूप कहते हैं। गाया:-नन्दादि सोलह वापिकाएं सीन कोटो से संयुक्त है तथा वन की भूमि के निकट पतुपं वीथी के मध्य में तीन पीठौ युक्त जिन प्रतिमा से अधिष्ठित है, अ ( अ ) भाग: जिनका नया पो धर्म रूपी वैभव से युक्त हैं ऐसे मानस्तम्भ शोभायमान होते है ॥ १०१५ । विशेषाण-पूर्वोक्त मन्दावि सोलह वापिकाएं तीन फोटो से संयुक्त शोभायमान होती है, और उन्हीं वनों की भूमि के निकट चतुर्थ वीथी के मध्य में, तीन पीठों से मुक्त, उपरिम भाग पर जिन प्रतिमा से अधिष्ठित तपा धर्म पी वैभव से युक्त मानस्तम्भ शोभायमान होते हैं। ... . . .... इति श्रीनेमिचन्द्राचार्यविरचित त्रिलोकसार प्रन्थ में नरविर्यग्लोकाधिकार का वर्णन पूर्ण हुआ ॥ ६ ॥

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