Book Title: Triloksar
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 807
________________ पाषा1१.१०-१०११ नरतिमंग्लोकाधिकार संगीत मण्डप और अवलोक मण्डपों से तथा कोडागृह, गुरणन गृह (शास्त्राभ्यास आदि का स्थान) और विशाल एवं उत्कृष्ट पट्टाछा (चित्राम आदि दिखाने का स्थान ) से संयुक्त है। साम्प्रतं प्रथमद्वितीयशालयोरन्तरामस्वरूपमाह सिहमपर सहगरुडसिहिदिणहंसारविंदचक्कषया । पुद अट्ठसया चउदिसमस्के के मनुसय खुल्ला ॥१.१०॥ सिंहगजवृषभगरुडशिखींद्विनहंसारविन्दचक्रध्वजा।। पृथक् अष्टशतानि चतुर्दिश मेककस्मिन् अष्टशत झुल्लाः ११.१०॥ सिह । सिंहाजवषमगजशिशोदिनहंसारविन्धचक्रवमा पक् पृषधोतरशतानि । एवं प्रत्येक चतुविक्षु भवन्ति । अत्रककस्मिन पुरुषम्बजे अष्टोत्तरशतमुल्लकाममा भवन्ति । १०१०॥ छ। प्रथम और द्वितीय कोटों के अन्तराल का स्वरूप कहते हैं 1 पापा:-प्रत्येक जिन मन्दिर की चारों दिशाओं में सिंह हाथी, वृषभ, गरुड, मयूर, चन्च, सूर्य, हस, कमल और चक्र के आकार की १०८, १०८ बजाए हैं तथा इन १०८,१०८ मुख्य इजाओं में प्रत्येक को १०८, १८ छोटी वजाएँ हैं।। १०१०॥ विशेषार्म 1--प्रत्येक जिन मन्दिर की चारों दिशाओं में सिंह, हाथी, वृषभ, पकड़, मयुर, चन्द्र, सूर्य, हंस, कमल और चक के चिह्नों से चिह्नित १०८, १०८ मुख्य बजाए हैं तथा ल १०८, १०८ मुख्य ध्वजाओं में प्रत्येक की १०८, १०८ ही छोटी वनाएं हैं। प्रथम और द्वितीय कोट के बीच के अन्तराल में ध्वजाए हैं। प्रत्येक जिन मन्दिर को, एक दिशा में मिह चिह्नाङ्कित ध्वजाएँ १०५ हाथी चिन्हाङ्कित १०८ इसी प्रकार वृषभादि चिह्नाङ्कित भी १०८, १० मुख्य ध्वजाएं हैं। अर्थात मन्दिर की एक दिशा में सिंह आदि दश प्रकार के चिह्नों को धारण करने वाली ( १०८x१. )= १०८० मुरुप ध्वजाए हैं। एक दिषा में १०८० है, अत: चाय दिशामों में ( १८०x४)=४३२० मुख्य ध्वजाएं हुई । एक मुख्य ध्वजा की छोटी परिवार ध्वजाएं १० हैं अत: ४३२० मुख्य ध्वजाओं को ( ४३२०४१०%)-४६५५६० परिवार वालों का प्रमाण है और एक मन्दिर सम्बन्धी सम्पूर्ण ध्वनाओं का प्रमाण (४६१५६+४३२० ४७.८० है। ये वजाएँ प्रथम और द्वितीय कोट के अन्तराल में हैं। द्वितीयप्रकारप्राकारबायोरन्तरालस्वरूपं गाथात्रयेणाह चउवणमसोयसपच्छदचंपयचूदमेत्थ कप्पतरू | कणयमयकुसुमसोहा मरगयमयविविहएचड्ढा ॥१०११।। " -.-.' . L A %D . . . -

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