Book Title: Triloksar
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 814
________________ परिशिष्ट खंड १ करणसूत्र गात. १७, ११, ११ या तगुणो स्कूल सिधि होती है। पास के वर्ग को १० से गुणा करी वर्गमूल प्राप्त करने पर सूक्ष्म परिधि होती है। ___ व्यास के चौथाई से परिधि को गुणा करने पर क्षेत्रफल होता है। क्षेत्रफल को वैध से गुणा करने पर खातफल ( घनफल ) होता है । ध्यास के अर्घभाग का घन करना चाहिये । उस धन का पुनः अर्घ भाग कर ए से गुणा करने पर जो लब्ध प्राप्त हो वही गोष्ट वस्तु (गेंद आदि ) का घनकल है। परिधि के ग्यारहवें भाग को परिषि के छठवें भागके वर्गस गुणित करने पर शिमाउ का धनफल ( शिक्षाफल ) प्राप्त होता है। मुख भोर भूमि में से जिसका प्रमाण अधिक हो उसमें से होन प्रमाण को घटाकर, एक कम पद से भाजित करने पर चय' का प्रमाण प्राप्त होता है इस चय को विवक्षित पद की संख्या से गुणा कर, गुणनफल को होन प्रमाण में जोड़ने पर विवक्षित पद का प्रमाण प्राप्त होता है। मुख और भूमि को जोड़कर मारा करके पद से गुणा करने पर पदधन या क्षेत्र फल की प्राप्ति होती है। एक कम पद का चय में गुणाकर, गुणानफल को भूमिमें से षटा देने पर मुख की प्राप्ति होती है तथा मुखमें जोड़ने से भूमि की प्राप्ति होती है। पद में से एक घटाकर दो से भाजित करके उत्तर (चय ) से गुणा करने पर, उसमें प्रभव ( मुख जोकर पदसे गुणित करने पर पद पन प्राप्त होता है। विवक्षित गृथ्वी के इन्द्रक विौंको संख्यामें से एक घटा कर आधा पारने पर, जो लब्ध प्राप्त हो, उसका वर्ग कर, उसमें उसका वर्गमूल जोड़ देनेसे तथा ८ से गुणा कर ४ जोड़ने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसको इन्द्रक विलोंको संख्यासे गुणित कर देने पर विवक्षित पृथ्वी का सङ्कलित धन प्राप्त होता है। पद का जितना प्रमाण है, उतनो बाय गुणाकार का परस्परमें गुणाका प्राप्त गुणानफलमें से एक घटा कर, एक कम गुणाफारसे भाजित करने पर जो इन्ध ११४, १६३ १६३

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