Book Title: Triloksar
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 797
________________ ७५३ बाथा : 10 से IEL नतिर्यग्लोकाधिकार आदिनाम भगवान् के बराबर है (१०. पनुष ) ऊंचाई धिन की ऐसी रत्नमय एक सौ आठ प्रतिमाएं हैं। ९८५, ६८६ ॥ विशेषा:-उन १०८ गर्भरहों के मध्य में सिंहासनादि से सहित रत्नमय १०८, १०८ प्रतिमाएं हैं। जिनके विशेष नीले केमा, सुन्दर बनमय दांत, मूगा सहा मोह तथा नवीन कोंपल की शोभा को धारण करने वाले हाथ पैर के तल भाग हैं । जो दश ताल प्रमाण लक्षण से भरी हुई है। पो देखती हुई के सदृश, बोलती हुई के सदृश एवं आदिनाथ भगवान के सदृश ५०० धनुष ऊँची हैं। ताः कपम्भूता: चमरकरणागजक्खगनची संमिहणगेहि पुह जुला। सरिसीए पंतीए गम्भगिहे सुद्द सोहंति ।। ९८७ ॥ सिरिदेवी सददेवी सव्याहमणकुमारजखाणं । रूवाणि य जिणपासे मंगलमढविहमवि होदि ।।९८८।। भिंगारकलसदप्पणवीयणघषचामरादवचमहा । सुबइठ्ठ मंगलाणि य अट्ठहियसयाणि पचेयं ।। ९८९ ।। चमरकरनागयक्षगद्वात्रिंशन्मिथुनेः पृथक् युक्ताः । महश्या पंक्त्मा गभंगृहे सुष्ठ योभन्ते ॥८॥ श्रीदेवी व तदेवी सर्वाह्नसनत्कुमारयक्षाणां । रूपाणि च जिनपारा मङ्गलमष्टविधमपि भवति भृङ्गारकलशदर्पणवीजनचजचामरातपत्रमय । सुप्रतिष्ठ मङ्गलानि च अष्टाधिकशतानि प्रत्येकम् ।।६८६॥ घमर । अमरकरमागयक्षगतहाविशन्मिथुमः पृषक पृषक् गर्भगृहे सनाया पंपस्या युक्ताः सुन्छु जोमम् ॥ ७ ॥ सिरि। सचिनप्रतिमापाचे मोदेवो भूतवेषो सर्वाङ्गसनत्कुमारयशाणा स्पाणि अष्टविधानि मङ्गलानि च भवन्ति ।। ९८८ ।। भिगार । भङ्गारकलपवणयोजनध्वजयामरातपत्रसुप्रतिष्ठापसमङ्गसानि । हानि मंगलाव पुनः प्रत्येकमष्टाधिकशतप्रमितानि भवन्ति Recen वे प्रतिमाएं कैसी है ? गापार्थ :-वे जिन प्रतिमाएँ, चमरधारी नागकुमारों के बत्तीस युगलों और पक्षों के तीस युगलों सहित, पृथक् पृथक एक एक मभंगृह में सहन पंक्ति मे भगे प्रकार शोभायमान होती है। उन

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