Book Title: Triloksar
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 795
________________ गाथा । ८२-८३ नरतिर्यग्लोकाधिकार ७५१ इनके द्वारों की ऊंचाई सोलह योजन प्रमाण है। उत्कृष्ट द्वारों के दोनों पाव भागों में वो दो छोटे द्वार है ।। २५१ ।। विशेष :-- उत्कृष्ट जिनालयों को लम्बाई १०० योजन और अवगाह अर्थ योजन प्रमाण है 1 इन जिनालयों के उत्कृष्ट द्वारों की ऊंचाई १६ योजन प्रमाण है । उत्कृष्ट द्वारों के दोनों पाश्र्व भागों में दो दो छोटे दरवाजे हैं । उत्कृष्टादिविशेषणविरहितानां वसतीनामायामः कियानित्युक्त बह वेपथु मामलिजिण मवणाणं तु कोस आयामं । साणं सगजोग मायामं होदि चिणदि ।। ९८२ ।। विजयार्थ जम्बुशाल्मलि जिन भवनानां तु कोश आयामः । शेषाणा स्वकयोग्य: आयामो भवति जिनदृष्टः || ६८२ ॥ de | विजमावि जम्बूवुझे शाल्मलीबुद्धे च विनभवनानामापान एकक्रोशः पोषाणां भवन। दिजिनालयामां स्वयोग्यायामो जिनंहः ॥ ८२ ॥ उत्कृष्टादि विशेषण से रहित जिनालयों का आयाम कितना है ? ऐसा पूछने पर कहते हैं : गाथा: - विजयाचं पर्वत, जम्बू और शाल्मली वृक्षों पर स्थित जिनालयों का आयाम एक कोस प्रमाण है तथा अवशेष जिनालयों ( भवनवासियों के भवनों एवं व्यश्वरदेवों के आवासों में स्थित ) का अपने अपने योग्य मायामादिक का प्रमाण जिनेन्द्र देव के द्वारा देखा हुआ है अर्थात् अनेक प्रकार का है अतः यहाँ कहा नहीं जा सकता ।। ६२ ।। उक्तानां जिन भवनानां परिकरं गाथारासकेनाह चउगोरमणिमालति वीहिं पढि माणथंभ णवथूद्दा | raचेद्रियभूमी जिणमवणाणं च सन्धेसिं ॥ ९८३ ॥ चतुर्गोपुरमणिशालत्रयं वीथ प्रति मानस्तम्भानवस्तूगः । वनध्वजाचैत्यभूमयः जिनभवनानां च सर्वेषां ॥ ९८३ ॥ । सर्वेषां जिन भवनानां चतुर्गापुरयुक्तमखिममशालत्रय प्रतिषोध्येकंक मानस्तम्भाः । नव मव स्तूपाश्च भवन्ति । तच्छात्रयान्तराले बाह्यावारम्य मेरा वनध्वजचैत्यभूमयो भवन्ति ॥ ८३ ॥ ऊपर कहे हुए जिनालयों का परिवार सात गाथाओं द्वारा कहते हैं : गाथार्थ :- समस्त जिन भवनों के चाय गोपुर द्वारों से संयुक्त मणिमय तीन कोट हैं। प्रत्येक वीथी में एक एक मानस्तम्भ और नव नव स्तूप हैं। उन कोटों के अन्तरालों में क्रम से वन, ध्वजा और चैत्यभूमि है ।। ८३ ।।

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