Book Title: Triloksar
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 798
________________ ७५.४ त्रिलोकसाब पापा : ६६० से ९६३ जिन प्रतिमाओं के पाश्व भाग में श्रीदेवी, श्रुतदेवी, सर्वाह्न यक्ष और सानत्कुमार यक्ष के रूप अर्थात् प्रतिमाएं हैं तथा अष्टमङ्गल द्रव्य भी होते हैं। मारो, कलश, दर्पण, पङ्खा, ध्वजा, चामर, छत्र ओ ठोना ये आठ मंगल द्वय है। ये प्रत्येक मंगल द्रव्य १०८, १०८ प्रमाण होते हैं ॥ ६८७ ८८ ८ विशेषार्थ:- के जिन प्रतिमाएँ चौसठ चमरों से वीज्यमान है । अर्थात् हाथों में हैं चमर जिनके ऐसे नागकुमार के ३२ युगलों और यक्षों के ३२ युगलों से सहित है। पृथक् पृथक् एक एक गर्भगृह में सदृश पंक्ति में भली प्रकार शोभायमान होती है। उन प्रतिमाओं के पार्श्वभाग में श्री (लक्ष्मी) देवी, श्रत (सरस्वती) देवी, सर्वाह्न यक्ष और सरनरकुमार यक्ष की प्रतिमाएं तथा अष्ट मंगल द्रव्य हैं । झारी, कलश, दर्पण, पला, ध्वजा, चामर, छत्र जोर ठोना से आठ मङ्गळ द्रव्य हैं। ये प्रत्येक मंगल द्रव्य एक सौ आठ, एक सौ आठ प्रमाण होते हैं । इसी प्रकार तिलोय पण्णत्ती में भी कहा है : सिरिददेवीतहासवासकुमार जखाएं। रूवारिं पत्तेक्कं प्रति वररया इरइदाणि ।। १८८१ ॥ ( चतुर्थ अधिकार ) अर्थ -प्रत्येक प्रतिमा के प्रति उत्तम रत्नादिकों में रचित श्रीदेवी, श्रुतदेवी तथा सर्वाङ्क्ष व साकुमार यक्षों की मूर्तियां रहती हैं ।। १८८१ ॥ K अथ गर्भगृहाद्वाह्मस्वरूपं गाथाचतुष्टयेनाह मणिकण पुण्फ मोद्दिपदेवच्छंदस्य पुष्पदो मज्मे | बसईए रूपकं चणघडा सहस्साणि बत्तीसं ॥ ९९० ॥ महदारस्य दुपासे चवीससइस्समत्थि धृवघडा । दारवहिं पासदुगे मट्टसहस्वाणि मणिमाला ।। ९९१ ।। सम्मज्स हेममाला चउवीसं वदणमंडवे हेमा | कलसामाला सोलस सोलसहस्त्राणि धूवघडा ||९९२ || महुरझणझणणिणादा पोचियमणिनिम्मिया सकिंकिणिया । बहुविहघंटाजाला रहदा सोहंति तम्भज्के ।। ९९३ ।। म किनकपुष्पशोभितदेवन्द्रन्दस्य पूर्व तो मध्ये | वसत्यां रूप्यकश्चनघटसहस्राणि द्वात्रिंशत् ॥ १६० ॥ महाद्वारस्य द्विप चतुविशसहस्र सन्ति धूपघटाः । द्वावहि पाश्वंद्वये अष्टसहस्राणि मणिमालाः ।। ६१ ।। तन्मध्ये ममाला चतुविशतिः वदनमण्डपे हैमाः । काका: षोडश बरेपासह आणि धूपघटाः ।। १३२ ।।

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