Book Title: Triloksar
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 793
________________ पापा:७८-11-७०० नरतियंग्लोकाधिकार URI इदानी त्रिलोकस्थिताकृत्रिमचैत्यालयानां सामान्येन व्यासादिकमाह आयामदलं वासं उभयदलं जिणधराणमुरुच । दारुदयदलं वासं माणिहाराणि तस्सद्ध ।। ९७८ ॥ मायामदतं व्यासं उमयदळ जिनगृहाणामुञ्चत्वं । वारोदयदलं व्यासः अणुद्वाराणि तस्या ।। ९७८ ।। पावामा उत्कृष्टावित्यालयानामायामा १.५० २५ तेवा यास: ५०। २५ । ५ मायाममासयोरुमयो उ० १५. म.७५ ०१ दल जिनगृहाणामुख्यत्वं ५५ । । तेषा बारोदयः १६ । ८ । ४ बल द्वार मासः ८ । ४ । २ क्षुल्लकाराणि धूहद्वारार्थोक्यन्यासानि ॥ ७ ॥ अन त्रैलोक्यस्थित अकृत्रिम चैत्यालयों का सामान्य से व्यासादिक कहते हैं: गाथा:-उत्कृष्ट आदि चैत्यालयों के आयाम के अचं भाग प्रमाण उनका ध्यास है तथा आयाम और ध्यास के योग का अर्थ भाप प्रमाण उन जिनालयों का उदय ( ऊंचाई ) है। दारों को ऊँचाई के अर्धमाग प्रमाण द्वारों का ग्यास ( चौड़ाई) है तथा बड़े दारों के व्यासादि से छोटेदारों का व्यासादिक अधं मधं प्रमाण है ।। ६७८ ॥ विशेषार्थ:-उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य जिनालयों का आयाम कम से १. योजन, ५० पोजन और २५ योजन प्रमाण है। पनी जिनालयों का व्यास ( चोड़ाई) आयाम के अर्घ भाग प्रमाण अर्थात ५० योजन, १६ योजन और १२३ योजन प्रमाण है तथा इनकी ऊंचाई, लम्बाई और चौड़ाई के अर्ष भाग प्रमाण अर्थात् (१००+५ =१५०-२७५ योजन, (५०+१५)=७५:२०७१ योजन और ( २५+१२)-५=१५१ योजन प्रमाण है । उत्कृष्ट, मध्यम और अपग्य जिनालयों के द्वारों की ऊंचाई कम मे १६ योजन, - योजन और ४ योजन प्रमाण है तथा इन्हीं दारों को चौड़ाई, ऊंचाई के अभाग प्रमाग अर्थात् ८ योजन, ४ योजन और २ योजन प्रमाण है। छोटे दारों का उदय एवं यास बड़े द्वारों के उदय एवं व्यास से अध अर्घ प्रमाण है । अर्थात् उस्कृष्ट, मध्यम और बम्प जिनालयों में जो छोटे छोटे दरवाजे हैं उनकी ऊंचाई कम से ८ योजन, ४ योजन पोर २ योजन है तथा उनका व्यास ( चौडाई) ४ योजन, २ योजन बोर एक योजन प्रमाण है। उक्तार्थमेव विशेषतो गायावयेनाह परमझिममवराणं दलक्कम मसालणदणगा | गंदीसरगविमाणगजिणालया हवि जेट्ठा हु ।। ९७९ ॥ सोमणसरुजगकुंडलवक्खारिसुमारमाणुसुचरगा | पुरुमिरिगा वि य मनिमम जिणालया पहिगा भवरा ।।९८०॥

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