Book Title: Triloksar
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 766
________________ ७२२ त्रिलोकसाब गाया : ९३२-१३३ श्या २७८९२२३३२ पुष्कलावतोवाद्याधाम एव देवारयश्वाद्यायामः १८७४४७२१। प्रस्यानयनप्रकारं विवृणोति - वैशवृद्धि ४५८३३३३ षोडशनि १३ साथिका ७३३२८३३क्षावृद्धि ४७७०१९ भि गुमला ३८१६३६३ विभंगबुद्धि ११६२३२ षभिर्गु विश्वा ७१४३३३ फच्छाया प्राणायामशि ३१३ सहितान् सर्वानात्मलमिया शुभा १२१ कला स्यात् । सहल १६ मेशिन मेलमिश्या कच्छाद्यायामति २०६५७० सहितानां सर्वेषामशिन मेलने १८७४४७ बेवारस्यायाद्यायामः । अत्र देवारय्यबुद्विक्षेत्र २७८१३ युक्त मध्यायाः ५६०२३६२२३ मस्मिन् पृमहल शिक्षेत्र युक्त मायामः ५९३०२६२ स्थात् । एवं सोलाया दक्षिणतटेऽपि विजयबारविभंगदेवानां व्यासपरिधिवृद्धिक्षेत्रापामास्तत्रातव्याः । एवं पुष्करार्धेऽपि विजयवक्षारविपर्ववारण्यध्यासानां परिषीनामोम उभयो म भागोरपन्नगुणकार द्विकेम गुरुपिश्वाद्वावशोचरशिल्पा क्षेत्रलाकाभि २१२ या चतुःषट्टा विवेशलाकाभि ६४ विश्वा लब्धं विदेहवद्धि क्षेत्र द्विकेन भक्तं लब्धमेकप्रावृद्धिक्षेत्रं मुखमूमिसमासार्थमित्यर्ष विश्वापवरथं तत्तल्लब्धवृद्धिक्षेत्रं तत्तदाखायामेषु युज्यात् । तथा सति तत्तम्मध्यायाम प्रागच्छति, पुनस्तत्तवृद्धिक्षेत्रे तत्तन्मध्यापामेषु प्रक्षिप्ले लत्त ह्यामामा प्रागच्छन्ति ॥ १३३ ॥ श्रत्र कच्छ्रादि देशो का मध्य आयाम और अन्तायाम प्राप्त करने का व्याख्यान दो गाथाओं द्वारा कहते हैं : : गावार्थ:- विदेह वक्षार, विभङ्गानदी और देवारश्य की परिधि को बत्तीस से गुणित कर दो सौ बारह का भाग देने पर वहाँ वहाँ की वृद्धि का प्रमाण प्राप्त होता है तथा अपनी अपनी वृद्धि का प्रमाण अपने अपने प्रथम आयाम में जोड़ देने पर मध्यम ब्रायाम मोर मध्यम आयाम में जोड़ देने पर अपने अपने अन्तिम आयाम का प्रमाण प्राप्त होता है ।। ९३१, ९३३ ।। विशेषार्थ:- विदेह देश, वक्षार पर्वत, विभङ्गानदी और देवारण्य वन इन चारों की परिधियों को पृथक् पृथक ३२ से गुणित कर २१२ का भार देने पर निज निज स्थानों की वृद्धि का प्रमाण प्राप्त होता है। उस निज निज स्थानों को वृद्धि के प्रमाण को निज निज स्थानों के प्रथम आयामों में जोड़ देने से मध्यम आयाम और मध्यम आयाम के प्रमाणों में जोड़ देने से अपने अपने स्थानों का अन्तिम मायाम प्राप्त हो जाता है । दोनों गायों का विशेष दर्शन करते हैं :- धातकी खण्ड के ४०० ००० व्यास में से मे और दोनों भद्रशाल वमों का २२५१५८ योजन व्यास घटा देने पर विदेहस्य भद्रशाल वनों के जागे पूर्व परिश्रम में अम्त का क्षेत्र १७४८४२ योजन अवशेष रहता है। इसे आधा करने पर मेस मे एक ओर के माघे प्रान्त क्षेत्र की कम्बाई ८०४२१ योजन प्रमाण प्राप्त होती है। अर्थात् पूर्व पश्चिम में भद्रशाल की बेदी से मागे समुद्र पर्यन्त विदेह क्षेत्र को लम्बाई का प्रमास ८०४२१ योजन है। इसमें से चाद चक्षार

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