Book Title: Triloksar
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 769
________________ जात गाथा: ९२२-१३ नरतिर्यग्लोकाधिकार प्रमाण ( ५१८७३८६+४७ )=५१:२१० योजन होता है, इसमें पुनः उसी खिक्षेत्र को मिला देने पर ( ५१५२१६ +४७७१५१९६६३ योजन वक्षार के अन्त में पायाम का प्रमाण प्राप्त हुआ। वक्षार के बाह्य आयाम का ५१६६६३५ योजन प्रमाण ही सुकच्छा देश का आद्यायाम है। इसमें पूर्व में प्राप्त किए हुए देश सम्बन्धी वृद्धि होत्र के ४५८३३१ योजन जोड् देने पर सुकच्या देश का मध्यापाम ( ५१९६६३ ४५८३५)= ५२४२७७.१० योजन प्रमाण होता है। इसमें एसो वृद्धिक्षेत्र का प्रमाण जोड़ देने पर सुकच्छा देश का बायायाम (१२४२०७२+४५८३१३)५२८८६१३१. योजन प्रमाण होता है। विभङ्गानदी का व्यास २५० योजन है, इसकी "विष्कम्भवग्ग" गाथा १६ से करणि रूप परिधि का प्रमाण ६२५.० योजन हुआ। इसका वर्गमूल ग्रहण करने पर ७९० योजन हए यही विभंगा की परिधि का प्रमाण है। जबकि १ भाग में ७५० योजन क्षेत्र होता है, तब दोनों भागों में कितना छोत्र होगा ? इस प्रकार शाणिक करने पर ५६ ० ४२ योजन हुए। पश्चाव २१२ शलाकाओं का ७० ४ २ योजन क्षेत्र में तो विह को १४ शलाकाओं का कितना क्षेत्र होगा ? इस प्रकार पुनः राशिक करने पर विदेह सम्बन्धी वृद्धिक्षेत्र का प्रमाण ७०x२x६४ योजन हपा । (पश्चात् नदी २५२ के तट रूप) दो प्रान्तों का 10४२४ ६४ योजन क्षेत्र है, तो एक प्रान्त का कितना क्षेत्र होगा ? इस २१२ प्रकार राशिक करने पर ७.४२ ६४ योजन हुए। २१२४२ इसे 'मुखभूमिसमासाद्य इस न्याय से आधा करने को दो का भाग देने पर utox२x६४ ११२४२४२ योजन होता है। इसका यथायोग्य अपवर्तन करने पर x ३२ योजन रहा और इसी से गाथा ॥३१ १२ में कहे हुए 'बत्तीसगुणा तहि बड्डी' की सिद्धि हुई । यहाँ ३२ गुणकार का गुणा करने पर २५३६० योजन हुए, इन्हें अपने मामहार से भाजित करने पर विभङ्गा नदी सम्बन्धी वृद्धि का प्रमाण १९९५३३ योजन प्राप्त होता है सुकच्छा देश के बाहयायाम का प्रमाण ५२८८६ योजन है और यही प्रमाण विभंगा नदी के आद्यायाम का है, अतः इसमें विभंगा सम्बन्धी वृद्धि क्षेत्र का प्रमाण मिला देने पर विभंगा के मध्य में आयाम का प्रमाण ( ५२८८६१२१५ --११९५३ )=५२८९८० योजन होता है और इसी में पुन: वही बुद्धि का प्रमाण मिला देने पर विभंगा के अन्त में मायाम का प्रमाण ( ५२८९८०११+ ११६.५३ ) - १२६९६ योजन होता है। इससे मागे महाकच्छादि देशों का, बक्षार आदि पदों का और विभंगा आदि नदियों का आयाम पूर्व पूर्व प्रमाण में निन निज वृद्धि का प्रमाण जोड़कर प्राप्त कर लेना चाहिए।

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