Book Title: Triloksar
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 786
________________ ७४२ त्रिलोकसार पाया १६६ पुण्यप्रभ २ लवण समुद्र के दक्षिण भाग में अनादर और उत्तर भाग में सुस्थित देव स्वामी है। ३ घातकी खण , , प्रभास . " प्रियदर्शन . । ४ काळोवक . . काल , महाकाल . . ५ पुष्कराषं एवं मानुषोसर ५ पद्म पुण्डरीक . .. ६ राम पुष्कराध द्वीप , चष्मान् में सुचक्षुष्मान् ॥ । ७ पुष्कर समुद्र - - पीप्रम भोघर + वाणी द्वीप . बता सरुणप्रभ १ वारणी समुद्र , मध्य मध्यम १.क्षीर वीप " पाण्डुर पुष्पदन्त १५ क्षीर समुद्र * विमल " विमलप्रभ १२ घृत दीप , सुप्रभ महाप्रम १२ घृत समुद्र , कनक कनकप्रभ १४ क्षौद्र द्वीप » पुषय " १५ क्षौद्र समुद्र - देवगन्ध - महागन्ध १६ नन्दीश्वय दीप . नन्दि नविभ १७ नन्दीश्वव समूद्र" १८ अरुण द्वीप . . अरुण . . अरुणप्रभ - १६ अरुण समुद्र . . सुपन्ध » सर्वगन्ध » »। इसी प्रकार माग भी प्रत्येक द्वीप समुद्रों में दो दो व्यन्तर देव स्वामी हैं। बवानों नन्दीश्वरद्वीपं सविशेष प्रतिपादयन् तावत्तस्य वरूपन्यासमाह भादीदो खलु अनुमणंदीसरदीयवलयविक्खंभो । सयसमझियतेवढीकोडी चुलसीदिलक्खा ये ।। ९६६ ।। भावितः खलु अमनम्वीश्वरद्वीपवलयविष्कम्भः । शतसमधिकत्रिषष्टिकोटिः चतुरशोतिलक्षश्च ।। १६६ । पारीयो । अम्मी पावारम्यामनन्दीश्वरमीपवलयविष्कम्मः शतसमधिकत्रिषष्टिकोटिचतुरपीतिलायोजनप्रमितः खलु १६३८४००००० एतावस्कर्ष नन्दीश्वरद्वोपसहितमातमीपसमुद्राणी संख्या १५ कृत्वा ऊपाहियपमित्यादिना कृते सति भवति ॥ ९ ॥ अब नन्दीश्वर दीप का सविशेष वर्णन करते हुए सर्वप्रथम उसका बलय व्यास सुभा

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