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त्रिलोकसार
पाया १६६
पुण्यप्रभ
२ लवण समुद्र के दक्षिण भाग में अनादर और उत्तर भाग में सुस्थित देव स्वामी है। ३ घातकी खण , , प्रभास . " प्रियदर्शन . । ४ काळोवक . . काल ,
महाकाल . . ५ पुष्कराषं एवं मानुषोसर ५ पद्म
पुण्डरीक . .. ६ राम पुष्कराध द्वीप , चष्मान् में
सुचक्षुष्मान् ॥ । ७ पुष्कर समुद्र - - पीप्रम
भोघर + वाणी द्वीप . बता
सरुणप्रभ १ वारणी समुद्र ,
मध्य
मध्यम १.क्षीर वीप " पाण्डुर
पुष्पदन्त १५ क्षीर समुद्र * विमल
" विमलप्रभ १२ घृत दीप ,
सुप्रभ
महाप्रम १२ घृत समुद्र ,
कनक
कनकप्रभ १४ क्षौद्र द्वीप
» पुषय " १५ क्षौद्र समुद्र -
देवगन्ध
- महागन्ध १६ नन्दीश्वय दीप .
नन्दि
नविभ १७ नन्दीश्वव समूद्र" १८ अरुण द्वीप . . अरुण . . अरुणप्रभ - १६ अरुण समुद्र . . सुपन्ध
» सर्वगन्ध » »। इसी प्रकार माग भी प्रत्येक द्वीप समुद्रों में दो दो व्यन्तर देव स्वामी हैं। बवानों नन्दीश्वरद्वीपं सविशेष प्रतिपादयन् तावत्तस्य वरूपन्यासमाह
भादीदो खलु अनुमणंदीसरदीयवलयविक्खंभो । सयसमझियतेवढीकोडी चुलसीदिलक्खा ये ।। ९६६ ।। भावितः खलु अमनम्वीश्वरद्वीपवलयविष्कम्भः ।
शतसमधिकत्रिषष्टिकोटिः चतुरशोतिलक्षश्च ।। १६६ । पारीयो । अम्मी पावारम्यामनन्दीश्वरमीपवलयविष्कम्मः शतसमधिकत्रिषष्टिकोटिचतुरपीतिलायोजनप्रमितः खलु १६३८४००००० एतावस्कर्ष नन्दीश्वरद्वोपसहितमातमीपसमुद्राणी संख्या १५ कृत्वा ऊपाहियपमित्यादिना कृते सति भवति ॥ ९ ॥
अब नन्दीश्वर दीप का सविशेष वर्णन करते हुए सर्वप्रथम उसका बलय व्यास
सुभा