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________________ गाथा : ६६१९६५ मरतियंग्लोकाधिकार ७४१ ससुगन्धः सर्वगन्धः अरुणसमुद्र इति प्रभू वो तो। द्वीपसमुद्र प्रथमः दक्षिणभागे उत्तरे द्वितीयः ।। ६६५ ॥ जंबू । जम्बहा लवरणसमा चामनी व्यन्सरावनादरसुस्थितायो पातकोखण्डे स्वामिनी प्रभासप्रियवर्षानी देवो ।। ६६१ ॥ काल । कालोबकासमु नापी कासमहाकालो पुस्कराधैं मानुषोत्तरे वाधीशो परपुण्डरीको पुष्करद्वीपे द्वितीया प्रभू चक्षुष्म पुचष्माणी पुकारोबषौ नायो श्रीप्रभषोघरी स्यातां ॥ ६६२ ॥ वरुणो । थारुणीसोपे नाचौ वरुणवरणप्रभो, वारणासमुई नापी मध्यमध्यमदेवी, सीरखोपे नामो पाण्डरपुष्पदन्ती, कोरसमुळे नाथी विमलविमलप्रभो घुतहीपे नायौ सुप्रममहाप्रमो॥ ६६३ || करणय । घृतसमाप्रमू कामककनकभी, झौद्रद्वोपे प्रभू पुण्यपुण्यप्रभो भोइसमुदं प्रभू वेवगन्धमहागम्यौ। ततो मन्दीश्वरती प्रभू नन्दीनन्धिप्रभो नन्दीश्वरसमु प्रभू भासुभद्रौ, प्राणद्वीप प्रभू मरुणारुणप्रभो ॥१६॥ ससुगंध । परुषसमुद्र नामको ससुगन्धसर्वगन्धो इति द्वीप समुत्रे च नौ नौ प्रभू भवतः । तत्र दक्षिणभागे प्रथमोक्तः स्यात उत्तरमागे द्वितीयोक्त: पाव ।। ६६५ ॥ अब द्वीपसमुद्रों के स्वामियों के सम्बन्ध में पांच गाथाएं कहते हैं :गाथार्थ:-जम्बूद्वीप और सपणसमुद्र में अनादर और सुस्थितनामके घ्यन्तर देव स्वामी हैं। धातकी खण्ड में प्रभास और प्रियदर्शन देव स्वामी है। कालोदक समुद्र में काल और महाकाल तथा पुष्कराध एवं मानुषोत्तर में पद्म और पुण्डरीक, बाघ अधं पुष्कराधं द्वीप एवं पुश्कर समुद्र में कम से चक्षुष्मान और सुबक्षुष्मान तथा श्रीप्रभ और श्रीधर देव हैं। वारुणी द्वीप में वरुण और वरुणभ, बामणी समुद्र में मध्य और मध्यम, बोरद्वीप में पाष्टुर और पुष्पदन्त, क्षीर समुद्र में विमल ओर विमलप्रम तथा घृत द्वीप में सुप्रभ और महाप्रभ स्वामी हैं। घृत समुद्र में कनक और कनकप्रभ, क्षौद्र द्वीप में पुण्य और पुण्यप्रभ, झौद्र समुद्र में देवगन्ध और महागन्ध, नन्दीश्वर द्वीप में मन्दि और नन्दिप्रम, नन्दीश्वर समुद्र में भद्र और सुभद्र, अरुण दीप में अक्षण और अरुण प्रभ, अषण समुद्र में सुगन्ध और सर्वगन्ध नाम के देव स्वामी हैं। इसी प्रकार प्रत्येक द्वीप और समुद्र में दो दो व्यन्तय क्षेत्र स्वामी है । इन सभी में जिनका नाम पहिले कहा है वे दक्षिण भाग में और जिनका नाम पीछे कहा है वे उत्तर भाग में स्थित है ।। ६६१-६६॥ विशेषार्थ :-जम्बू द्वीप के दक्षिण भाग में अनादर और उसर भाग में स्थित देव स्वामी हैं। -.. --- - .. .-. -. ..--
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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