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________________ नरतियं ग्लोकाधिकार ७४३ गाया : ९६७ गावार्थ:- जम्बूद्वीप से प्रारम्भ कर प्रा नदीवर द्वीप पर्यन्त का वलय व्यास एक सौ त्रेसठ करोड़ चौरासी लाख योजन प्रमाण है ।। ३६६ ॥ विशेषार्थ :- जम्बूद्वीप से प्रारम्भ कर नन्दीश्वर द्वीप का वलय व्यास एक सो मठ करोड़ चौरासी लाख योजन प्रमाण है। इतना प्रमाण कैसे होता है ? जम्बूद्वीप से नन्दीश्वर द्वीप पर्यन्त के समस्त द्वीप समुद्रों की संख्या १५ है । इमे "रूऊाहिय पत्रमित्र" गाया ३०६ के नियमानुसार पद (गच्छ) स्वरूप करके पद में से एक कम करके ( १५- १) अवशेष १४ का विरलन कर प्रत्येक के ऊपय दो का अक देय स्वरूप देकर परस्पर में गुणा कर, लब्ध में से ० (शून्य) घटा देने पर तथा ५ शून्य से सहित करने पर नन्दीश्वर द्वीप का वलय व्यास १६३८४००००० योजन प्रमाण है। यधा :- पद - १६३८४ प्राप्त हुए इन्हें ५ शुभ्यों से सहित १५ - १-१४३३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३३२२ 10311 >} - १६३८४००००० योजन नन्दीश्वर द्वीप के कर एक शून्य घटा देने पर ( १६३८४००००० वलय व्यास का प्रमाण प्राप्त होता है । 33 . - D मात्र दिचतुष्टयस्थितानां पर्वतानामाख्या संख्यामवस्थानं च निरूपयति एक्कच उक्कड जगद दिनुहरहरणमा पडिदिसहि । मज्मे चदिसावी मज्मे तच्चा हिरदुकोणे ।। ९६७ ।। एकचतुष्काष्ठाखनदधिमुखरतिकरनगाः प्रतिदिशं । मध्ये चतुर्दिग्वापीमध्ये तद्वावद्विकोणे ॥ ६६७ ॥ एक्क । प्रतिविशं मध्ये चतुरस्यवापोमध्ये तद्वापीवाद्विको च ययासंख्यं एक चतु४हकासंख्याकाः प्रज्ञ्जनदधिमुखरतिकराख्याः नगा श्वोश्वरी ज्ञातयाः ॥ ९६७ ॥ आगे इस द्वीप की चारों दिशाओं में स्थित पर्वतों के नाम, संख्या और अवस्थान का विरूपण करते हैं : : पायार्थ :- नन्दीश्वर द्वीप की प्रत्येक दिशा के मध्य में एक, चारों दिशा सम्बन्धी बावड़ियों के मध्य में चाय और बावड़ियों के ब्राह्म दो दो कोनों में एक एक अर्थात् क्रमशः अञ्जन, दधिमुख और रतिकर नाम के पर्वत हैं ।। १६७ ॥ विशेषार्थ:- नन्दीश्वर द्वीप की प्रत्येक दिशा के मध्य भाग में अखन नाम का एक एक पर्वत है। इस पर्वत की चारों दिशाओं में चार बावड़ियां हैं जिनके मध्य में दधिमुख नाम का एक एक अर्थात् ४ दधिमुख पर्वत हैं तथा इन बावड़ियों के दो दो बाह्य कोनों पर एक एक अर्थात् आठ रतिकर पर्वत है। इस प्रकार एक दिशा में ( अञ्जन १, दधिमुख ४ और रतिकर ) - १३ पर्वत और ४ बावड़ियों है अतः चारों दिशाओं में ( अञ्जन ४, दधिमुख १६ ओर रविकर ३२ = ५२ पवंत और ४ बावड़ियाँ हैं । =
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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