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त्रिलोकसार
पाषा: E६.-१६६-१७०
अथ तगिरीणां वर्ण परिमाणं च प्रतिपादयति
अंजणदहिकणपणिहा चुलझीदिदहक्कजोयणसहस्सा । वट्टा वासुदएणय सरिसा चावण्णसेलाओ ।। ९६८ ।। अमनदधिकनकनिभाः चतुरशीतिदर्शकयोजनसहनाः।
वृत्ताः ध्यासोदयेन सहशाः द्वापखाशमछला: ॥१८॥ अंगण । अजनावयस्त्रयः पर्वताः पथासंख्यं प्रसनवाधिकनकाभाः तेषां प्रमारणं चतुरशतिसहन E४000 यशसहस्र १०००० कसहस्र १००० योजनानि । ते च वृत्ताः ध्यासोबयेन सदृशाः सर्वे मिलिया पश्चाशच्छला ५२ भवन्ति ॥६६८ ॥
अब उन पर्वतों के वर्ण और प्रमाण का प्रतिपादन करते हैं :
गापार्ष:-अखन, दघिमुख और रतिकर पवंत यथाक्रम प्रचन, दधि और स्वर्ण सदृश वर्ण वाले हैं। ये कमश: चौरासी हजार, दस हजार और एक हजार योजन प्रमाण वाले हैं। इनका उदय ( ऊँचाई) और व्यास सहश है । आकार गोल है। इस प्रकार ये बावन पर्वत हैं ॥ ६६८॥
विशेषा।-चार अञ्जन पर्वत अञ्जन-कजल सरश, १६ दधिमुख पर्वत दधि सदृश ( श्वेत) और ३२ रतिकर पर्वत तपाए हुए स्वर्ण सदृश वर्षे वाले हैं । अचन पर्वतों की ऊचाई एवं भूमुख व्यास -४००० योजन, दधिमुखों का १०००० योजन और रतिकरों का एक-१००० योजन है। अर्थात इन पर्वतों की जितनी ऊंचाई है, उतनी ही नीचे ऊपर चौड़ाई है। ये खड़े हुए ढोल के सदृश गोल साकार वाले हैं। इनकी सम्पूर्ण संख्या ५२ है। इदानीं तद्वापीनां नामानि गाथाद्वयेनाह
गंदा गंदवदी पुण गंदार दिसेण अरविरया । गयवीदसोगविजया वईनयंती जयंती य ।। ९६९ ।। अबराजिदा य रम्मा रमणीया सुप्पभा य पुख्वादी। स्यणतड़ा लक्खपमा चरिमा पूण सव्वदोमदा ।। ९७.॥ नन्दा नन्दवती पुनः बन्दोत्तरा नन्दिषेरणा अरविरजे । गतवीतशोकाविज याः वैजयन्ती जयन्ती च ॥९६९॥ अपराजिता व रम्या रमणीया सुप्रभा च पूर्वादितः ।
रत्नतट्यः लक्षप्रमाः चरमा पुनः सर्वतोभद्रा ।। ६७०॥ वा । मन्वा नमवली पुनर्नोत्तरा मन्विषेरणा प्ररणा विरमा शोका बीतशोका विजया वनपती जयन्ती च ।। ६६६ ।।