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पाषा:७१-७२
नरतियंग्लोकाधिकार
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प्रवरा । अपराजिता च रम्या रमणीया सुम्मा च चरमा पुमः सर्वतोभद्राः। एताः सर्वा रमासटयो लक्षयोजनप्रमिता पूर्वविभागादितो बातम्याः ॥ ७० ॥ ___ अब उन वापियों के नाम दो गाथाओं द्वारा कहते हैं :
गाथा:-पूर्वादि चारों दिशाओं में क्रमशः नन्दा, नन्दवती, नन्दोत्तरा, नन्दिषणा, परजा, विरजा, गतशोका, बीतशोका, विजया, वैजयन्ती, जयन्ती, अपराजिता, रम्या, रमणोपा, सुप्रभा और सर्वतोभद्रा रत्नमय तट से युक्त ये सर्व वापिकाएं पक लाख योजन प्रमाण वाली हैं ॥ १६॥-100 ॥
विशेषार्थ -नन्दीश्वर दीप की पूर्व दिशा में नन्दा, नमवती, नन्दोत्तर मोर नन्दिपणा ये चार वापिकाएं हैं । दक्षिण दिशा में अरजा, विरजा, गतशोका और वीतशोका, पश्चिम दिशा में विजया, वैजयन्ती, जयन्ती और अपराजिता तथा उतर दिशा में रम्गा. रमणीया, समभा और सर्वतोभद्रा ये चार गापिकाएं हैं। इन सब वापिकाओं के तट रत्नमय है तथा ये १००००० योजन प्रमाण वाली हैं। अनन्तरं सासां वापीनो स्वरूपमाह
सव्वे समचउरस्सा टंकुक्किण्णा सहस्तमोगाका । वेदियचउवण्णजुदा जलयरउम्मुकबलपुण्णा ।। ९७१ ।। सर्वाः समचतुरस्राः टोत्कोः सहस्रमवगाधाः ।
वेदिकाचतुर्वयुता जल चरोन्मुक्तजलपूर्णाः ॥ ९४१ ॥ सम्वे । ताः सर्वाः समचतुरनाटोकोणाः सहस्रयोजनावगाथा: पेरिकाभिश्चतुर्वनैश्व युक्ताः गलचरोन्मुक्तजालपूर्णाः स्युः ॥ ९७१ ॥
अब उन वापिकाओं का स्वरूप कहते हैं :
गावार्थ:--वे सर्व वापिकाएं समचतुरन, टलोत्कीर्ण, एक हजार योजन अवगाह युक्त, चार चाय वनों से साहित, जलचर जीवों से रहित और जल से परिपूर्ण है ॥ ६७१॥ .
विशेषार्थ :-थे सर्व वापिकाएं एक लाख योजन लम्बो और एक लाख योजन पौड़ी अर्थात् समचतुरस्त्र आकार वाली है । टस्कोरकीर्ण अर्थात ऊपर नीचे एक सदृश हैं। उनकी गहराई १०. योजन प्रमाण है ये वेदिकाए चारों दिशाओं में एक एक वन अर्थात् प्रत्येक चार चार वनों से संयुक्त है। ये जलचर जीवों से रहित और जल से परिपूर्ण हैं। अथ तद्वापीनां वनस्वरूपमाह
बावीणं पुनादिसु असोयससच्छदं च चंपवणं । चूदवणं च कमेण य सगबाबीदीहदलवासा ।। ९७२ ।।