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मरतियं ग्लोकाधिकार
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७३३२८३योजन, वक्षार पर्वतों का वृद्धि प्रमाण ३८१६६६२ योजन और ६ त्रिभङ्गा नदियों का वृद्धि प्रमाण ७१४३३३ योजन है। इन चारों का योग ५८०४४७१११ योजन हुआ। यही देवारण्य का आद्यायाम है इस माद्यायाम में देवारण्य सम्बन्धी वृद्धि क्षेत्र १७०६२२ योजम जोड़ देने पर देवारम्य के मध्यमायाम का प्रमाण ५६०२३६३३३ योजन तथा इसी में पुन: वही वृद्धि प्रमाण जोड़ देने पर कालोदक के निकट देवारण्य के बाह्यायाम का प्रमाण ५६३०२६२ योजन होता है।
पापा ६३४-६३५
इस प्रकार जैसे सीता नदी के उत्तर नट का वर्णन किया है, उसी प्रकार सोता के दक्षिणतट के विदेह देश, वक्षार पर्यंत, विभङ्गा नदी और देवारभ्य के ध्यास, परिधि, वृद्धिक्षेत्र और आयाम का प्रमाण वहाँ वहीं प्राऊ कर लेना चाहिए जिसमे कवं दिशा में अधिक अधिक अनुकम सेवन किया है, उसी प्रकार मेरु की पश्चिम दिशा में भद्रशाल वन से हीन होन अनुकम द्वारा वर्णन करना चाहिए। वहाँ हानि का प्रमाण वृद्धि प्रमाण सदृश ही है ।
इसी प्रकार पुष्करा में भी देश, वक्षार, विभङ्गा बोर देवारण्यके यथासम्भत्र व्यास सोय परिधि का प्रमाण निकाल कर दोनों भागों के यह हेतु दो से गुणित कर २१२ शलाकाओं से भाजित कर प्राप्ता को विदेहशलाका ६४ से गुणित करने पर जो लब्ध प्राप्त हो, वह विदेह वृद्धिक्षेत्र है । उसको दो से भाजित करने पर एक प्रान्त सम्बन्धी वृद्धि क्षेत्र प्राप्त हुआ, उसे "मुखभूमिसमासाचं" न्याय द्वारा आधा कर अपवर्तन करने से स्व स्व स्थान का लब्ध मात्र वृद्धि क्षेत्र का प्रमाण प्राप्त हो जाता है, उस वृद्धि क्षेत्र को अपने अपने आदि आयाम में जोड़ देने पर अपना अपना मध्यायाम मोय स्व स्व मध्यायाम के प्रमाण में जोड़ देने पर अपने अपने बाह्यायाम का प्रमाण प्राप्त होता है। पूर्वपूर्व का बाह्यायाम हो उस उत्तर का आदि आयाम होता है । मेरु को पश्चिम दिशा में हीन रूप से जानना चाहिए।
trainstoryoneद्वीपयोः किञ्चिद्विशेषस्वरूपं गायाद्वयेन ---
arry दीवा धादपुक्खरतरूहिं संजुचा । तेसिं च वण्णणा पुण जंबूदुमंत्रणणं व हवे ।। ९३४ ।। वादगंगारच हिमसिहरिणोवरि उजु बादि । णवणमतिणविगि चलणं जंबू व पुक्खरे दुगुणं ||९३५ ।। arantyesरोप घातकीपुष्करतदभ्यां संयुक्तौ । तयोः पवना पुनः जम्बूद्रुमवरांना इव भवेत् । ९३४ ॥ धातकीगङ्गरक्ता हिमशिखरिनगोपरि ऋजु यातः । नवनमस्त्रिये चलन अम्बू व पुष्करे द्विगुणं ॥ ९३५ ॥