Book Title: Triloksar
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

View full book text
Previous | Next

Page 762
________________ ७१८ footere माया : १११ (अवण समुद्र की ओर ) अभ्यन्सर सूची ध्यास प्राप्त होता है। इस ६७४८४२ योजना अभ्यन्तर भवशाल के सूची व्यास का विष्कम्भवदह गुण" गाया ९६ के नियमानुसार वर्ग कर देश से गुणित कहने पर ४५५४११७२४९६४० योजन होने हैं, उनका वर्गमूल निकालने पर ११३४०३७ योजन उस अभ्यन्तर भद्रवाल की सूची व्यास की परिधि हुई । इस परिधि के प्रमाण में से धातकी खण्वस्थ पर्वतों द्वारा अवरुद्ध क्षेत्र १७६८४२ योजन घटा देने पर ( २१३४०१७ १७८८४२ ) == १९५५१९५ योजन पर्वत रहित परिधि का प्रमाण प्राप्त हुआ । यथा: 161 dg S'ka Trol — गिरिरदिप रिद्दिगुणिदं भडकदिणा विसयवारसेहि हिदं । दिहीणदलं दीहं प्रच्छादिमगंध मालिणी भंते ।। ९३१ ।। पिरितिपरिधिगुणितं वष्टकृतिना द्विशतवादः हितं । नदीहीनदनं दीर्घ पछादिमं गन्धमालिनी अन्ते ।। ३१ ।। गिरि । एतावदलायोः २१२ एतावति क्षेत्रे ११५५१९४ एसावद्विशलाकयोः ६४ किमिति सम्पात्य गिरिरहितपरिषिमनुश्या संगुष्य १२५१३२४८० प्रमाणेन द्वादशोत्तरद्विशतेन २१२ हृसं दिभ्यन्तरसूचीस्थले विदेहविक्रमः स्यात् । ५६०२४७३१२ प्रत्र मवोण्यास १००० होमविश्वा ५६४२४७३२३ ते २९४६२३२ गन्धमासिन्यादयदेशयात्यायामः स्यात् । प्रागामीत धातकीखण्डबाह्य मशाल सूचीण्यास ११२५१५८ पूर्वक कृत्या १२६४९८०५२४९६४० सूने गृहोते तत्परिधिः मात् ३५५८०६२ अस्मिन् पर्वतावरुद्ध क्षेत्र १७८८४२ प्रमीय ३३७६२२० प्रात्ौशिक विधिना कृत्या ६४ संगुट २१६२७००८० डावलोवेन २१२ भको बाह्मभवास जोमाने विदेहबिचकभः

Loading...

Page Navigation
1 ... 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829