Book Title: Triloksar
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 751
________________ पापा : ११५ नरतियंग्लोकाधिकार ७०७ रहते हैं; जो कोष के कारण सबसे कलह करते हैं; जो अरहन्त तथा साधुओं को भक्ति नहीं करते। जो चातुर्वण्यं संघ के विषय में वात्सल्य भाव से विहीन होते हैं, जो जिन लिग के घारी होकर हर्ष पूर्वक स्वर्णादिक ग्रहण करते हैं; जो संयमी के देष में कन्या विवाहादिक करते हैं जो मौन के बिना भोजन करते हैं; जो घोर पाप में संलग्न रहते हैं, जो अनन्तानुबन्धि चतुष्टय में से किसी एक के उदय होने से सम्यक्त्व को नष्ट करते हैं। वे मृत्यु को प्राश होकर विषम परिपाक वाले पाप कर्मों के फल से समुद्र के इन तोपों में कुत्सिन रूप से युक्त कृमानुष उत्पन्न होते हैं ।। २५०३ - २५११ ।। नोट :-जम्बूद्वीप पहात्ती में भी सर्ग १• गाथा नं० ५९ से ७९ तक यही विषय द्रष्टव्य है। साम्प्रतं घातकोखपुष्कराधपोरेकप्रकारलादने वक्ष्यमाण क्षेत्रविभागहेतून तयोरुभय पाईस्थितमिध्वाकारपर्वानाह चउरिसुगारा हेमा चउड सहस्सवास णिसहुदया । सगदीववासीहा इगिडगिनसदी हु दक्खिणुत्तरदो ॥९२५।। चतुरिष्वाकाग हेमा: चतुःकूटाः सहस्र यासा निषधोदयाः। स्वकद्वीपव्यासदीर्घा एककवसतयः हि दक्षिणोत्तमतः ।। १.२५ ।। घउ । घातकीर एउपुरकरायोमिलित्वा हेमपयाश्चतुः कूटाः सहस्रमासाः निषधोवया ४०० वस्कीयद्वीपक्ष्यासदाः एककवसतयश्चत्वार इष्वाकारपर्वतासपोर्वोपयोक्षिणोत्तरतस्तिम्ति Eun घातको खण्ड और पुष्कराध में क्षेत्र व पर्वतादि एक प्रकार के हैं। इनमें क्षेत्रों का विभाग, करने वाले दोनों पार्व भागों में स्थित इष्वाकार पर्वतों को कहते हैं : पाया :- दोनों द्वीपों के दक्षिणोत्तर दिशा में चार इवाकार पर्वत हैं जो स्वर्णमय और चार चार कूटों से संयुक्त हैं। जिनका एक हजार योजन व्यास, निषध कुलाचल सहा उदय बोय अपने अपने द्वीपों के व्यास प्रमाण म्बाई है तथा जो दक्षिण मोच उत्तर दिशा में एक एक स्थित हैं, .. एवं दक्षिणोत्तर क्रम्बे हैं || ६२५ ॥ विशेषा:-घातको खण्ड और पुष्कराध द्वीपों को दक्षिणोतर विद्या में स्वर्ण पय चार इष्वाकार पर्वत हैं । ये चारों पर्वत चार चार कुटों से सयुक्त हैं, उनकी पूर्व पश्चिम चौडाई १... योजन प्रमाण है निश्ध कुलाचल मदृश ४.० योजन ऊंचे हैं तथा अपने अपने द्वीपों के व्यास सदृश चार और आठ लाख योजन प्रमाण लम्बे हैं। ये दक्षिण और उत्तर दिशा में एक एक स्थित है तथा दक्षिणोत्तर लम्बे हैं। अथ तदद्वीपतयावस्थिताना कुलगिरिप्रभृतीनां स्वरूपं निरूपति--

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