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त्रिलोकसार
पाया: ३३२
पापार्थ:-नारकी, एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और सम्मानपचेन्द्रिय ये सर्व जीव नपुसक ही होते हैं। भोगभूमिज एवं देव ये नपुंसकवेदी नहीं होते । गर्भज मनुष्य और तिर्यश्च सोनों वेद काले होते हैं ॥ ३३१ ॥
विशेषार्थ :-नारकी, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचन्दियसम्मूच्छंन ये सब नपुसक वेदी ही होते हैं, भोगभूमिज तियंञ्च और मनुष्य तथा देव स्री और पुरुष वेदी ही होते हैं नपुसक वेदी नहीं होते. तथा कर्मभूमिज, गभंज, मनुष्य और तिर्यश्व तीनों देद वाले होते हैं ।
एवं प्रासङ्गिकानुङ्गिकार्य प्रतिपाद्य दानी प्रकृतार्थ तारादिस्थितिस्थान गाथात्रयेण निविशति :
णउदुचरसचसए दस सौदी चदुदुगे तियचउक्के । तारिणससिरिका पुछा सुक्कगुरुंगारमंदगदी ।। ३३२ ।। नवत्युत्तरसप्तशलानि दश अशीतिः चतुहिके त्रिकचतुष्के ।
तारेनशशिऋक्षबुधा। शुक्रगुर्वङ्गारमन्दगत्तय: ॥ ३३२ ।। एउ । चित्रातः प्रारम्य नवत्युत्तरसप्तशतयोजनानि, सत उपरि रशयोजनानि, ततः प्रशोसियोजनानि, ततश्चत्वारि चस्वारि योजनानि द्विस्थाने, ततस्त्रीणि श्रीणि बोजनानि पतुः स्थाने गत्वा यथासंख्येन ताराः इनाः काशिन: शाणि मुषा: शुजाः गुरव पगारा: मन्तगतयश्च तिष्ठन्ति ॥ ३३२ ॥
प्रासङ्गिक प्रसङ्ग रूप अर्थ का प्रतिपादन करके अब प्रकृत ज्योतिर्लोकाधिकार में तारादिकों के स्थान का निर्देश तीन गाथाओं द्वारा करते हैं :
गापार्थ :- [ चित्रा पृथ्वी से ] सात सौ मम्ने योजन ऊपर, इससे दश, अस्सी दो बार चार अर्थात् चार, चार और चार बार तीन योजन अर्थात् तीन, तीन, तीन और तीन योजन ऊपर क्रम से तारा, सूर्य, चन्द्र, ऋक्ष, ( नक्षत्र ) बुध, शुक्र, गुरु, अंगारक ( मंगल ) और मन्दगति ( पा.नेश्चर ) स्थित है ।। ३३२॥
विशेषार्थ :- चिश्रा पृथ्वी से ज्योतिबिम्बों को ऊंचाई निम्नलिखित प्रकार से है :--
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