________________
त्रिलोकसार
पापा : ६०५-६०५ तथा राशि केन सिद्ध विदेहविष्कम्भाङ्क प्रतिपादयन् अत्रैवोपरि वक्ष्यमाणविदेहक्षेत्रादीनामानयनविधानमाह
चुलसीदि छतेचीसा चचारि कला विदेहविक्खंभो । णदिहीणदलं विजया वक्खार विभंगवणदीहा ।। ६०५ ।। चतुरशीति षट् त्रयस्त्रिशत चतस्रः कला विदेहविष्कम्भः ।
नदीहीनदलं विजयवक्षारविभङ्गवनदीर्घ ॥६०५ ॥ चुल । चतुरशीलिषद प्रयस्त्रिशद्योजमामि एकाग्मविशतेश्चतस्रः कलाश्च ३३६८४ विदेहविष्कम्भ: स्यात् । प्रत्र नाप्रमाणे निर्गमे ५. समुदप्रवेशं ५०० मध्ये यथासम्भव होमयित्वा ३३९४ (कृते १६५६२ सदेशवक्षारपतविभंगनवीवनाना वयंप्रमाणं स्यात् ॥ ६.५ ॥
इस प्रकार रैराविक द्वारा प्राप्त हुए विदेह के विस्तार के अङ्कों ( संख्या ) का प्रतिपादन करते हुए यहाँ से ऊपर कहे जाने वाले विदेह क्षेत्रादिकों का प्रमाण लाने के लिए विधान कहते हैं :
गापार्ष:-तेतीस हजार छह सौ चौरासी और एक योजन के उन्नीस भागों में से चार भाग ( ३३६४ योजन ) प्रमाण विदेह क्षेत्र का विष्कम्भ { चौड़ाई ) है। इसमें से सीता सोतोदा नदियों का विष्कम्भ घटा कर अवशेष का आधा करने पर जो प्रमाण प्राप्त हो वही विदेह नगर (३२), वक्षारगिरि (१६), विभंगा नदी (१२) और देवारण्यादि वनों की लम्बाई का प्रमाण है।।३.५॥
विशेषा:-विदेह क्षेत्र की उत्तर दक्षिण चौड़ाई ( विष्कम्भ ) ३३६८४ योजन है। इस क्षेत्र में से बहने वाली दो प्रमुख ( सीता और सीतोदा) नदियों के रह से निगम स्थान की चौड़ाई ५० योजन और समुद्र प्रवेश की चौड़ाई ५०० योजन ( २०००००. बीस लाख मील) है। विदेह विष्कम्भ ३३६८४ा योजनों में से नदी विष्कम्भ ५०० योजन घटा देने पर ( ३३६८४-५००)३३१८४ा योजन शेष रहे इस अवशेष का जो अचंभाग ( २३१८४)= १९५१२ गोजन प्रमाण है, वही ३५ विदेह नगर, १६ वक्षारगिरि, १२ विभंगा नदी और देवारमयादि वनों की दोपंता अर्थात् लम्बाई का प्रमाण है। अर्थात् उपयुक्त क्षेत्रादिक में से प्रत्येक की लम्बाई का प्रमाण १२ योजन है। साम्प्रतं विदेह मध्यस्थित्तमन्दरगिरेः स्वरूपमाचष्टे
मेरू विदेहमज्झे णवणउदिदहेक्कजोयणसहस्सा । उदयं भूसुवासं उवरुवरिगवणचउकजुदो ।। ६.६ ।। मेरुः विदेहमध्ये नवनवतिदर्शकयोगनसहस्राणि । उदयः भूमुखव्यासः उपयु परिगवनचतुष्कयुतः ।। ६.६ ।।