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पाथा : ५३६-७३७
नरतियंग्लोकाधिकार भावार्थ:-भरतरावतस्थित विजयार्थों के सभी १८ कूट काञ्चनमय हैं। इनमें से खण्डपात नाम कूट पर नृत्यमाल और तमिस्र फट पर कृप्तमाल तथा अन्य अवशेष फूटों पर अपने अपने कूटनामधारी ध्यन्तर देव निवास करते हैं ।। ४३५॥ अथ उक्तानां विजयाजिनालयानामुदयादिश्यमाह
कोसायामं तद्दल विस्थारं तुरियहीणकोसुदयं । जिणगेई कुडुवरि पुत्रमुई संठियं रम्मं ॥ ७३६ ।। कोशायाम तहलविस्तारं तुरीयहीनकोशोदयं ।
जिनगेहं कुटोपरि पूर्वमुखं संस्थितं रम्यं ।। १६ ॥ कोसा । सिडकूटस्योपरिकोशायाम २००० तवर्षविस्तारं ... । चतुर्थांश ५०० होनहोशोदर्य १५०० पूर्वमुखं रम्य जिनेन्द्रगेहं संस्थितं ॥ ७३६ ।।
उक्त विजमा स्थित जिनालयों के सदय वादि तीन ( उदय, व्यास और लम्बाई ) कहते हैंसिद्ध कूटों पर एक कोश लम्बे, अर्ध कोश चौड़े तथा चतुर्थ भाग हीन अर्थात् पौन कोश ऊंचे, पूर्वाभिमुख अतिरमणीक जिन मन्दिर हैं ।। ७१६॥
विशेषा:-भरतरायत क्षेत्रों के दोनों विजया? पर स्थित सिद्धकटों के ऊपर २००० धनुष ( १ कोश ) लम्बे, १०० धनुष १३ कोस ) चौड़े और १५.. धनुष । कोश ) ऊंचे, पूर्वाभिमुख रमणीक जिनमन्दिर हैं। अथ गज दन्ताख्यानां वक्षाराणामितरवक्षाराणां च कटसंख्यातनामादिकं गायाष्टकेनाह
णवसाय गवसत्य ईसाणदिसा दुदंतसेलाणं । वक्खाराणं चउचउकूडं तण्णाममणुकमसो ।। ७३७ ।। नव सप्त च नव सप्त च ईशान दिशः द्विदन्तशैलानां ।
वक्षाराणा चत्वारि चत्वारि कटानि तन्नामानि अनुक्रमशः ॥७३७॥ णव । ईशानवियः पारम्प जानतशेलामा क्रमेण कूटसंख्या व सप्त ७ नब सप्तरस्युः। इसरवक्षाराणां चरवारि ४ वत्वारि फूटानि तेषां नामाम्यनुहमशः कथयति ॥ ७३७ ॥
अव गवदन्त हैं नाम जिनके ऐसे चार वक्षार और अन्य १६ वक्षार पर्वतों पर स्थित कूटों की संख्या और उनके नामादिक आठ माथाओं द्वारा कहते हैं :
गाया:-ऐशान दिशा से प्रारम्भ कर चारों गजदन्त पर्वतों पर कम से नग, सात, नव और सात क्रूट है, तथा सोलह वक्षाय पर्वतों पर चार, चार कूट हैं उनके नाम अनुक्रम से [ निम्न प्रकार ] हैं ।। ७३७ ॥