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त्रिलोकसार
गाथा: प्रास होता है, तो एक फूट के अन्तर पर कितना क्षेत्र प्राप्त होगा? इस प्रकार बराधिक करने पर ( ३.२०६बर)-३३५६ यो• प्राप्त हुये और योजन अवशेष रहे । योजन में १का भाग देकर महिला देने पर [+txt)]=87 अर्थात् गजदस्त स्थित कटों में एक कूट से दूसरे फूट का अन्तर ३३५६१ योजन है। १ फूटों के परस्पर अन्तराल का प्रमाण भी इतना
इसी प्रकार अबकि ७ कूटों के अन्तराल पर ३०२०९० योजन क्षेत्र है, तो एक फूट के अन्तर पर कितना क्षेत्र प्राप्त होगा ? इस प्रकार राशिक करने पर ( ३.२०६५ ) -- ४३१५६३ योजन द्वितीय गजदन्त ऊपर एक कट से दूसरे कूट का अन्तय है। इसी प्रकार सातों कूटों का जानना चाहिए।
एक एक वक्षार पर्वतों की लम्बाई १६५९२ योजन है, और एक एक वक्षार ऊपर चार, चार फूट हैं। जबकि ४ कूटान्तरों पर १६५९२३. योजन क्षेत्र है, तर १ कटान्तर पर कितना क्षेत्र होगा ? इस प्रकार राशिक करने पर ( १६५९२ ) - ४१४८ योजन वक्षार स्थित कुटों में एक कट से दूसरे फूट का अन्तर है। इसी प्रकार चारों कटों में जानना चाहिए। अथ वक्षाराणामुमति तत्रस्थाकृत्रिमचैत्यालयस्थाननिर्देशं च करोति
वक्खारसयाणुदओ कुलगिरिपासम्हि पउसयं गुड्वा । णइमेरुस्स व पासे पंचसया तत्थ जिणगेहा ।। ७४५ ॥ यक्षारशतानामुदयः कुलगिरिपाचे चतुःशतं वृद्धया।
नदीमेरोश्च पार्ने पश्चशतानि तत्र जिनगेहाः ॥ ७४५ ॥ पक्षार वातवक्षारपर्वतामामुदयः कुलगिरिपार्व पतुःपत ४.. योजनानि, तसः परमनुकमेण पूरपा विहगताना नदीपार्वे गजबन्तानो मेरुपावे पञ्चशत ५०० पोजमायुस्सेषः तत्र पश्चशतयोजनोसेक्स्पकूटे जिनगेहाः सन्ति ॥ ७४५ ॥
वक्षार पर्वतों की ऊंचाई एवं वहाँ स्थित अकृत्रिम चैत्यालयों के स्थान का निर्देश करते हैं:
गायार्थ :-[ पश्चमेक सम्बन्धी मजदन्त सहित ] वक्षार पर्वतों का कुल प्रमाण १०० है । कुलाचलों के पाश्र्व भागों में उनकी ऊंचाई ४०० योजन है। इसके आगे झमिक वृद्धि से युक्त होते हुए सोठा-सोतोदा के निकट और मेरु के पाश्वं भागों में . यो• ऊंचे हैं, और उन पर जिनमन्दिर है || ७४५ ॥
विशेषार्थ ।-गजदन्त सहित एक मेरु के २० वक्षार पर्वत हैं, अतः पश्चमेश सम्बन्धी कुल वक्षार पर्वतों का प्रमाण १०० है । अर्थात् वक्षार पर्वत " हैं। जिनकी ऊंचाई कुलाचलों के पार्य भागों