Book Title: Triloksar
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 676
________________ ६३३ शिलोकसाथ गया : ७९९ से ८०१ केलि च शिक्षयति, एकादशः पुत्रेदिवर जीवनभयं निवारयति द्वादशः सेतुमहित्राभिस्तररण विधि शिक्षयति ॥ ८०० ॥ सिक्तं । त्रयोदशो जरायुवि शिक्षयति, परमो नाभिखिवि शिक्षयति, इखावादर्शनभयं निवारयति फलाकृतीषषिभुक्ति च शिक्षयति ततः परं कर्मभूमिवर्तते ॥ ८०१ ॥ अब कुलकरों के काल में उनके द्वारा किए हुए कार्यों का वर्णन चार गाथाओं द्वारा करते नाथार्थ :- प्रथमादि चौदह कुलकरों ने क्रमशः सूर्य चन्द्र से, तारागणों से एवं श्वापद आदि से उत्पन्न भय का निवारण, उनका दण्डादि से तर्जन, कल्पवृक्षों की सीमा का निर्धारण, सीमा की चिह्नाकृति, घोड़े आदि को सवारी, सन्तान के मुख दर्शन से उत्पन्न भय का निवारण, आशीर्वादादि वचनों की प्रवृत्ति, सन्तान के समक्ष कुछ काल तक जीवित रहने वाले माता पिता को चन्द्रमा आदि दिखा कर बच्चों को क्रीड़ा आदि कराने की कला का शिक्षण, सन्तान के समक्ष बहुत काल तक जीवित रहने से उत्पन्न होने वाले भय का निवारण, पुल, नाव आदि द्वारा नदी आदि पार करने का विधान, जरायु छेदन, नाभिछेदन इन्द्रधनुष दिखने एवं बिजली आदि चमकने से उत्पन्न होने वाले भय का निवारण तथा फलो की आकृति में यह औषध है. यह भोजन योग्य है इत्यादि का निर्धारण किया था। यहीं से कर्मभूमि का प्रारम्भ हुआ था ॥ ७६६, ८००, ८०१ ॥ विशेषार्थ :- प्रथम प्रतिवति नामक कुलकर ने पूर्व में कभी नहीं देखे गए ऐसे सूर्य चन्द्र को देख कर भयभीत हुए प्रजाजन के भय का निवारण किया था। ( २ ) सम्मति कुलकर ने ताराम्र को देखने से उत्पन्न हुए भय का निवारण किया था । ( ३ ) क्षेमङ्कर कुलकर ने र पत्रपद आदि के शब्दों को सुनकर उत्पन्न हुए भय का निवारण किया था। ( ४ ) क्षेमम्बर कुलकर ने अत्यन्त करता को धारण करने वाले पशुओं को लाठी ( दण्ड ) आदि से तर्जन करना सिखाया था । (५) सीमङ्कर कुलकर के समय में कल्प वृक्ष विरल रह गए थे और फल भो अल्प देने लगे थे इसलिए लोगों को आपस में झगड़ते देख कर इन्होंने उन कल्पवृक्षों की सोमा ( मात्र वचन से ) का विधान बना दिया था । ( ६ ) सीमन्धर कुलकर ने कल्पवृक्षों की उपर्युक्त सीमा को झाड़ी आदि चिह्नों से चिह्नित किया था । ( ७ ) विमलवाहन कुलकर ने घोड़े आदि की सवारी का विधान बताया था। (८) चक्षुष्मान् कुलकर के समय में संतानोत्पत्ति के भर बाद माता-पिता का मरा होने लगा था अतः सन्तान का मुख देखने से जो भय उत्पन्न हुआ था, उसे चक्षुष्मान् ने दूर किया। ( ६ ) यशस्वी कुलकर के समय में माता पिता कुछ अधिक समय तक जीवित रहने लगे मतः इन्होंने सन्तान को आशीर्वाद आदि देने की शिक्षा दी थी। (१०) अभिचन्द्र कुलकर ने सन्तानोत्पति के बाद कुछ दिनों एक जीवित रहने वाले माता पिता को चन्द्रमा आदि दिखा कर बालकों को कीड़ा कराने की शिक्षा

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