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घिलोकसार
पाषा : ६११ बावीसं । सुवर्शनमेरोभाशालपनं पूर्वापरेण प्रत्येक बाविशलिसहनयोजमग्यास, मन्दनं पश्चशतयोजनम्यास, सौमनसं पञ्चशतपोजानग्यासं, पाक षडूनपश्यतयोजनव्या ४९४ । सुवर्षामस्थ प्रथमवनं वयित्वा सर्वमेका नन्दनावि बनानि सदृशप्रमाणानि ॥६१॥
उन वनों के विस्तार का वर्णन करते हैं :
गाया :-सुबर्णन मेरु के भद्रशाल वन की (पूर्व पश्चिम दिशा की ) चौदाई २२००० भोजन, मन्दन वन की ५०० योजन, सौमनस वन की ५०० योजन और पाण्डक वन की ४६४ योजन है। सुदर्शन मेल के भद्रशाल बन को छोड़कर सभी मेह पर्वतों के नन्दनादि तीनों दनों की चौड़ाई का प्रमाण सहक्षा ही है ।। ६१०॥
विशेषार्म :-सुदर्शन मेरु के भद्रशाल बन की चौड़ाई पूर्व दिशा में २२००० योजन, पश्चिम दिशा में २२००० योजन (दक्षिण में २५• और उत्तर में भी २५. योजन) है। पांचों मेघ पर्वतों के नन्दन वनों की चारों दिशा की चौड़ाई का प्रमाण ५०० योजन है। पाँचौ सौमनस वनों की चारों दिशा की चौदाई का प्रमाण भी ५०० योजन ही है, तथा पांचों पाण्डुक वनों को चारों दिशा को चौड़ाई का प्रमाण १६४ योजन है । तात्पर्य यह हुआ कि सुदर्शन मेक के भदशाल वन को छोड़ कर पागों मेर पर्वतों के नन्दनादि वनों का प्रमाण सदृश ही है। अथ तनचतुष्टयस्थितचैत्यालयसंख्यामाइ
एफ्फैक्कवणे पहिदिसमेक्के कजिणालया सुसोहंति । पहिमेमुपरि तसिं दण्णणमणुवण्णइस्सामि ॥ ६११ ।। एककवने प्रतिदिशमेजिनालयाः सुशोभन्ते ।।
प्रतिमेकमुपरि तेषां वर्णनमनुवर्णयिष्यामि || ११ || एक्के । प्रतिमेव एकस्मिन बने प्रतिविशमेककमिनालया: सुशोभन्ते । उपरि षो स्थालमानां पर्णममनु पश्चानन्दीश्वरदीपवर्णनावसरे वर्णयिष्यामि ॥ ६११ ॥
उन चारों वनों में स्थित चैत्यालयों की संख्या कहते हैं :
गावार्थ:-प्रत्येक मेरू पर्वत के ऊपर प्रत्येक बन की प्रत्येक विशा में एक एक जिनालय शोभायमान हैं, जिनका वर्णन मैं ( श्री नेमिचन्द्राचार्य ) बागे कहंगा ।। ६११॥
विशेषा : प्रत्येक मे पर्वत पर भद्रशाल आदि चार चार पन है और प्रत्येक वन की चारों दिशामों में एक एक जिन चैत्यालय है। इस प्रकार पख मेष सम्बन्धी १६ वनों के ८० जिन चैत्यालय शोभायमान हैं। जिनका वर्णन अन्य चैत्यालयों के वर्णन के बाद नन्दीश्वर द्वीप के वर्णन के अवसर पर ग्रायकर्ता करेंगे।