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पाया : ६०४
मरस य किमो जंबूदीवस्स णउदिसदभागो । पंचसया छबीसा ऋच्च कला ऊणवीसस्स ।। ६०४ ।। भरतस्य च विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्य नवतिशत भागः । पचाशतानि षड़विशानि षट् च कला एकोनविशतेः ॥ ६०४ ॥
भर । भरतस्य विष्कम्भो जम्बूद्वीपस्थ १ ल० नवलिशत भागः १५० सः इतिचेत् पञ्चशतयोजनानि षड्वंशत्यधिकानि एकोनविंशतेः षट्कलाभ्यधिकानि भरतfeoकम्भः ५२६६६ ॥ ६०४ ॥
स्वात
इस प्रकार उक्त राशिक द्वारा लाए हुए भरत क्षेत्र के व्यास का प्रमाण कहते हैं :गावार्थ :- भरत क्षेत्र का विमोचन दो जम्बूद्वीप के विस्तार का एक सो
क्रमांक
नवाँ भाग मात्र है ।। ६०४ ॥
विशेषार्थ :- भरतक्षेत्र का विष्कम्भ जम्बूद्वीप के १००००० योजन विस्तार का १९० में भाग है | वह कैसे ? यदि ऐसा प्रश्न है तो जम्बूद्वीप के १००००० विस्तार में १६० का भाग देने पर ५२६५५ मोजन भरत क्षेत्र का विस्तार प्राप्त होता है। इसी प्रकार राशिक करने पर ( १०००००X२ ) . २०००० - १०५६१३ योजन हिमवान् पर्वतका विष्कंभ प्राप्त होता है। इसी प्रकार अस्मत्र भी जानना चाहिए ।
समस्त क्षेत्र एवं कुलाचलों के विस्ताय का प्रमाण :
क्षेत्रों का विस्तार
१
२
नरतिर्यग्लोकाधिकार
एवमुक्तवैशशिकातील भरतक्षेत्रे व्यासमुच्चारयति -
५.
६ ।
७
नाम
योजनों में
क्रमांक
भरत
हैमवत
हरि
विदेह
रम्यक
T हैरण्यवत २१०५८४२१०५२३३
ऐरावत | ५२६४४ | २१०५२६३५
नाम
मीलों में
| योजनों में
I
| ५२६ । २१०५२६६६ १। हिमवन् २०१२३४
I २१०५८४२१०५२
२
महाहिमवन् ४२१०६
८४९१५ ३३६८४२१०१४ | ३
निषध
१६८४२ व
३३६८४४| १३४७३६८४२२४
नील
८४२१५ | ३३६८४२१० २१
रुक्मी
शिखरी
५०९
कुलाचलों का विस्तार
१६८४२६
४११०३०
१०५२६३
मीलों में
४२१०५२६५
१६८४११०५
६७३६८४२११
६७२६८४२१२३
१६८४२१०५
४२१०४२६५४