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त्रिलोकसार
गाथा : ३०१
गायार्य :-गोल आदि भवनपुरों का उत्कृष्टादि विस्तार कमशः एक लाख योजन और एक योजन है । आवासों का उत्कुष्टादि विस्तार कमश: बारह हजार दो मौ ( १२२०० योजन और पोन योजन है ।। ३०० ।।
_ विशेषार्थ :- गोलादि आकार वाले भवनपुरों का उत्कृष्ट विस्तार एक लाख योजन और जघन्य विस्तार एक योजन प्रमाण है। इसी प्रकार गोल मादि आवासों का उत्कृष्ट विस्तार बारह हजार दो मो। १२२०० ) योजन तथा जघन्य विस्तार पौन योजन अर्थात् तीम कोस है। श्रय निलयत्रयाणां विशेषस्वरूपं भौमाहारोच्छ बासं च कथयति :
भवणावासादीर्ण गोउरवायारणच्चणादिधग । भोम्माहारुस्सासा साहिएपणदिणमुहुत्ता य ।। ३०१ ।। भवनावासादीनां गोपुरपाकारनतनादिगृहाणि ।
भौमाहारोच्छन ।सो साधिकपश्चदिनानि मुहूर्ताश्च ॥३.१।। भषणा । भषमावासावीना गोपुरप्राकारमसंनादिगृहाणि मवन्ति । भौमाहारोच्छवासो पषाहमेण साधिकपञ्चविनानि साधिकपञ्चमुहताश्च ॥ ३०॥
तीनों प्रकार के निलयों का विशेष स्वरूप और व्यन्तरदेवों के आहार एक उच्छवास का निरूपण करते हैं :
गाथार्य :-- व्यन्तरदेवों के भवनों एवं मावासादिको में द्वार, कोट तथा नृत्य मादि के लिए घर भी होते हैं। व्यन्तरदेवों का आहार और उच्छ्वास क्रमशः कुछ अधिक पांच दिन में और कुछ अधिक पांच मुहूर्त में होता है ॥ ३.१ ।।
विशेषार्थ :- व्यन्तर देवों के भवनों और आयासादिकों में दरवाजे, प्रासाद एवं नृत्यगृह आदि भी होते है। जिन व्यन्तरदेवों की आयु पल्य प्रमाण है वे पांच दिन के अन्तर से आहार लेते हैं और पांच महनं वाद उच्छ्वास लेते हैं । तथा' जिन व्यन्त रदेवों की आयु मात्र दस हजार वर्ष है, उनका आहार दो दिन बाद और श्वासोच्छवास सात पाणापारण { श्वासोच्छवास ) पश्चात् होता है ।। इति श्रीनेमिचन्द्राचार्यविरचिते त्रिलोकमारे व्यन्तरलोकाधिकारः ॥३॥ इस प्रकार श्री नेमिचन्द्राचार्य विरचित त्रिलोकसार में
यस्तर लोकाधिकार सम्पूर्ण हुआ।
हि.५० अधिकार गाथा ८६-१