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पाया।
कोकसामान्याधिकार
मुरष । पुरनले ससमझः उपरित प्रारम्य रलशकरा वालुकापडपातमोमहातमः प्रभास रवंतरिताः। पत्र प्रभाशरदः प्रत्येकमभितम्बरण्यः ॥१४॥
इस १४ घन राजू प्रमाण क्षेत्र से बाहर अस जीव नहीं पाये जाते इसीलिये इसका अस नाली नाम सार्थक है।
त्रस नाली के अपोभाग में स्थित पृध्यिमों के शव आदि महा:---
गावार्थ:-अर्घ मृदङ्गाकार में सात पृथ्वि यो है। सबसे ऊपर (1) रनमा फिर (२) पारा प्रभा (३) बालुका प्रभा (४) पक प्रभा (५) धूम प्रभा (६) तमः प्रभा ओर (७) महातमः प्रभा है। प्रत्येक पृथ्वी एक एक राजू के अन्तर मे है ।।१४४।।
विशेषा --लोक का प्राकार वेद मृदङ्ग के सदृश कहा गया है । जिसमें अमृदङ्गाकार में अषो लोक है । इसी अर्धमृदङ्गाकार में ही रत्नप्रभा आदि सात पृध्वियां हैं। ये सातों पृध्वियों सार्थक नाम वाली है, क्योंकि इनमें क्रम में रल, मिश्री, रेत, कादा(कीचड़ ) घुमा, अन्धकार और महा मंधकार के सदृश प्रभा पाई जाती है। ये सातों पृध्वियो एक एक राजू के अन्तर से स्थित हैं । मध्य लोक और प्रथम पृथ्वी के बीच में कोई अन्तर नहीं है अर्थात् प्रथम पृथ्वी का उपरिम भाग मध्य लोक है । (मध्य लोक के तल भाग से स्पर्शित ही प्रथम पृथ्वी है ) । प्रथम पृथ्वी से एक राजू के अन्तर पर दूसरी पृथ्वी है। इसी प्रकार तीसरी आदि पृध्वियां एक एक राजू के अन्तराल से हैं। यहां प्रभा शब्द प्रत्येक भूमि के साथ लगा लेना चाहिए। अथ तासां संशान्तराग्याह
घम्मा रंसा मेघा अंजपरिहा य हावि मणिउन्मा | छट्ठी मघवी पुढवी समिया माधवी गामा ॥१४५।।
घर्मा वंशा मेघा अञ्जनारिष्टा च भवन्ति अनियोध्याः ।
षष्ठी मधवी पृथ्वी समिका माधवी नाम ॥१४॥ घम्मा । धर्मशा मेघा पानारिहा भवन्ति पमियोध्या पाविनामाम: बडी मषबी पृथ्यो सप्तमी माधवो माम ॥१४५॥
जन पृथ्वियों के नामान्तर कहते हैं
गाथार्ष:- धर्मा २ वंशा ३ मेघा ४ अञ्जना ५ अरिया ६ मघवी, और ७ माधवी ये सात पृश्चिमा अनियोध्या अर्थात् अधरहित नाम वाली हैं ॥१४॥
विशेषा:-सातों नरक पृथ्वियों के घर्मा, वंशा, मेघा, मचाना, अरिष्टा, मषनी पौर माघी घे अनादिरूढ़ पर्यायान्तर नाम हैं । इन नामों का कोई अर्थ नहीं है।