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पाथा : १९१-१९२
लोकसामान्याधिकार पाया:-उन नरकों में ( पिघले हुए ) गर्म लोहे के समान जल से भरे कुम्भी हैं, अत्यन्त गर्म कढ़ाह है। वहां की भूमि गर्म, तपे हुए लोहे के समान स्पर्शवाली और सूई के समान पेनी दूब से ध्यान है ।।१९०।
विशेषाय:-जिस प्रकार यहाँ हडिया प्रादि में रखकर भोजन पकाते हैं तथा कसाही के गर्म तेल आदि में भोज्य पदार्थ तलते हैं, उसी प्रकार नरकों में नारकी जीव एक दूसरे को कुम्भी में रखकर पकाते हैं और गर्म कढ़ाहों में डालकर तलते हैं। अथ क्षेत्रस्पर्शजदु:खं दृष्टान्तमुवेनाह
विच्छियसहस्सवेयणसमधियदुक्खं धरिचिफासादो। कुक्खरिखसीसरोगमधतिसगयवेयणा तिष्वा ॥१९१॥
वृश्चिकसहस्रवेदनासमधिकदुःख परिधीस्पर्शाद ।
कृत्यक्षिशीषरोगगक्षुधातृषाभय वेदना तीवाः ॥११॥ kfreय । स्याविति शेषः । छायामात्रमेयायः ॥१९॥ वहाँ की भूमि के स्पर्श से होने वाले दुःख दृष्टान्त द्वारा कहते हैं
गावार्थ:-हजार बिच्छुओं के एक साथ काटने पर जो वेदना होती है, उससे भी अधिक वेदना वहाँ की भूमि के स्पर्श-मात्र से होती है। उन नारकियों को उदर, नेत्र एवं मस्तक आदि के रोगों से उत्पन्न तीव्र वेदना तथा भूख, प्यास, भय आदि की तीव्र बाधाएं होती हैं ।।१९॥
विशेषापं:- सुगम है। अथ ते कि भुजते इत्यत आह
मादिकहिदातिगंध सणिमपं मट्टियं विभुजंति । पम्ममवा वंसादिसु मसंखगुणिदासुई तचो ॥१९२॥
स्वादिषितातिगन्धामशनरल्पां मृत्तिको विभुजते ।
धर्मभवा वंशादिषु असंख्यगुणिताशुआं ततः ॥१९२।। सारि। स्वारिकुपितापलियामशनरम्पो मृतिका गिते पर्ममा वारिषु तसः अमक्यगुणिताशु मृत्तिको विभुजते ॥१९२॥
नारकी जीव क्या खाते हैं ? उसे कहते हैं