________________
ही जाते है ।) चौथा भव :
वहां से च्यवकर धनसेठ का जीव पश्चिम महाविदेह क्षेत्र के अंदर, गंधिलावती विजय प्रांत में, वैताढ्य पर्वत पर, गंधार के गंधस्मृद्धि नगर में, विद्याधरों के राजा शतबल की रानी चंद्रकांता की कूख से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। नाम 'महाबल' पड़ा। वयस्क (युवा) होने पर विनयवती नाम की योग्य कन्या के साथ उसका ब्याह हुआ। शतबल ने अपनी ढलती आयु देखकर दीक्षा ग्रहण की। महाबल राज्याधिकारी हुआ।
महाबल विषय-भोग में लिप्त होकर काल बिताने लगा | खुशामदी और नीच प्रकृति के लोग उसको नाना भाँति के कौशलों से और भी ज्यादा विषयों के कीच में फँसाने लगे।
एक बार उसके स्वयंबुद्ध मंत्री ने इस दुःखदायी विषयवासना से मुंह मोड़कर परमार्थ साधन का उपदेश दिया। विषयपोषक खुशामदियों ने स्वयंबुद्ध का विरोध कर इस आशय का उपदेश दिया कि जहां तक जिंदगी है वहां तक खाना पीना और चैन उड़ाना चाहिए। देह नाश होने पर कोई आता है न जाता है। स्वयंबुद्ध ने अनेक युक्तियों से परलोक और आत्मा के पुनर्जन्म को सिद्ध किया और कहा - शायद आपको याद होगा कि, आप और मैं एक बार नंदनवन में गये थे। वहां हमने एक देवता को देखा था। वे आपके पितामह थे। उन्होंने संसार छोड़कर तपश्चर्या करने से स्वर्ग की प्राप्ति होना बताया था और कहा था कि, आपको भी संसार के दुःखकारी विषय - सुखों में लिप्त न होना चाहिए ।
महाबल ने परलोक आदि स्वीकार कर इस युवावस्था में संसारत्याग के उपदेश का कारण पूछा। स्वयंबुद्ध ने कहा कि, मैंने एक ज्ञानी मुनि के द्वारा मालूम किया है कि, आपकी आयु केवल एक महीने की ही बाकी रह गयी है। इसलिए आपसे शीघ्र ही धर्म - कार्य में प्रवृत्त होने का अनुरोध करता हूं। यह सुनकर महाबल ने उसी समय, अपने पुत्र को बुलाकर राज्यासन पर बिठा दिया और अपने समस्त कुटुंब परिवार, स्वजन संबंधी, नौकर, रैयत, छोटे बड़े सबसे क्षमा मांगकर मोक्ष की कारण भूत दीक्षा ग्रहण की। फिर उसने चतुर्विध आहार का त्यागकर, शुद्ध आत्मचिंतन में - समाधि में
: श्री आदिनाथ चरित्र : 4:
—