Book Title: Tirthankar
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Tin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur

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Page 14
________________ आशीर्वाद जिनशासन रूप धर्मं तीर्थ को चलाने वाले महापुरुष तीर्थंकर कहलाते हैं । जैन शासन में २४ तीर्थंकर होते हैं, जो सत्यमार्ग से भटकते जीवों को अपनी दिव्यदेशना देकर धर्म लाभ देते हैं । ऐसे तीर्थंकरों का जीवन चरित्र अपने आप में महान् होता है । प्रत्येक आत्मा पूज्यनीय तीर्थंकरों के जीवन चरित्र का पठनपाठन कर हृदयंगम करता हुआ स्वयं भी आत्मा से परमात्मा बन सकता है । माँ सरस्वती के सत्पुत्र, ज्ञानधनी, गंभीर सद्लेखक, जिनशासन के मर्मज्ञ ज्ञाता, चारित्र आराधक देव-शास्त्र-गुरु के समर्पित भक्त पंडित जी श्री सुमेरचन्द जी दिवाकर ने "तीर्थंकर" नामक पुस्तिका लिखी है, जिसको पठनीय समझकर पुनः प्रकाशित करवाया गया है । इसका पुनः पुनः स्वाध्याय कर पाठकजन भी अपने परिणामों को निर्मल बनावे, यही मेरा आशीर्वाद है । आचार्य श्रीविमलसागरजी के शिष्य आचार्य भरतसागर मंगल आशीर्वाद मुझे ये जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई को मध्यलोक शोध संस्थान में श्री पार्श्वनाथ जिन बिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के परम पावन सुअवसर पर 'तीन चौबीसो कल्प वृक्ष शोत्र समिति द्वारा स्व० पं० सुमेरुचन्द्र जी दिवाकर द्वारा लिखित 'तोर्थंकर' पुस्तक का प्रकाशन होने जा रहा है इस पुस्तक को पूर्व प्रकाशित प्रति का मैंने आद्योपांत पूर्ण रूप से चिन्तन-मनन किया है । यह पुस्तक आज के वर्तमान युग में हो रही चर्चा "पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें क्यों ? पर इसमें लेखक ने पाँचों ही कल्याणक का संक्षिप्त में वर्णन कर गागर में सागर भर दिया है एवं इस पुस्तक के चिन्तन-मनन से सभी पाठकों की शंकाओं का समाधान स्वयं ही हो जाएगा। इस पुस्तक का प्रकाशन कराने में श्रीमान् महावीर प्रसाद जी सेठी एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती तारा देवी ने अपने पुत्र स्वo ललित सेठी की स्मृति में इस पुस्तक का प्रकाशन करवाया है । इनको एवं इनके परिवार को मेरा यही मंगलमय शुभ आशीर्वाद है कि इस क्षण भंगुर संसार में चंचल लक्ष्मी का सदुपयोग पुण्य कार्य में करें । इसके लिए आप सदैव आशीर्वाद के पात्र रहेंगे । इस कार्य के अन्दर बाबूलाल जी फागुल्ल (महावीर प्रेस) ने अल्प समय में ही अपने प्रेस से प्रकाशित करके शुभ कार्य किया है। इनको एवं सभी सहयोगियों को मेरा मंगलमय शुभ आशीर्वाद है । आचार्य १०८ श्री विमलसागरजी के शिष्य चैत्य सागर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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